टेल मी अबाउट राम मोहन रॉय
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राजा राममोहन राय,,,(22 मई 1772 - 27 सितंबर 1837 को भारतीय पुनर्जागरण का अग्रदूत और आधुनिक भारत का जनक कहा जाता है। इनके पिता का नाम रमाकांत तथा माता का नाम तारिणी देवी था।भारतीय सामाजिक और धार्मिक पुनर्जागरण के क्षेत्र में उनका विशिष्ट स्थान है। वे ब्रह्म समाज के संस्थापक, भारतीय भाषायी प्रेस के प्रवर्तक, जनजागरण और सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणेता तथा बंगाल में नव-जागरण युग के पितामह थे। उन्होंने भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम और पत्रकारिता के कुशल संयोग से दोनों क्षेत्रों को गति प्रदान की। उनके आन्दोलनों ने जहाँ पत्रकारिता को चमक दी, वहीं उनकी पत्रकारिता ने आन्दोलनों को सही दिशा दिखाने का कार्य किया।
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राम मोहन राय पश्चिमी आधुनिक विचारों से बहुत प्रभावित थे और बुद्धिवाद तथा आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर बल देते थे।
राम मोहन राय की तात्कालिक समस्या उनके मूल निवास बंगाल के धार्मिक और सामाजिक पतन की थी।
उनका मानना था कि धार्मिक रूढ़िवादिता सामाजिक जीवन को क्षति पहुँचाती है और समाज की स्थिति में सुधार करने के बजाय लोगों को और परेशान करती है।
राजा राम मोहन राय ने निष्कर्ष निकाला कि धार्मिक सुधार, सामाजिक सुधार और राजनीतिक आधुनिकीकरण दोनों हैं।
राम मोहन का मानना था कि प्रत्येक पापी को अपने पापों के लिये प्रायश्चित करना चाहिये और यह आत्म-शुद्धि और पश्चाताप के माध्यम से किया जाना चाहिये न कि आडंबर और अनुष्ठानों के माध्यम से।
वह सभी मनुष्यों की सामाजिक समानता में विश्वास करते थे और इस तरह से जाति व्यवस्था के प्रबल विरोधी थे।
राम मोहन राय इस्लामिक एकेश्वरवाद के प्रति आकर्षित थे। उन्होंने कहा कि एकेश्वरवाद भी वेदांत का मूल संदेश है।
एकेश्वरवाद को वे हिंदू धर्म के बहुदेववाद और ईसाई धर्मवाद के प्रति एक सुधारात्मक कदम मानते थे। उनका मानना था कि एकेश्वरवाद ने मानवता के लिये एक सार्वभौमिक मॉडल का समर्थन किया है।
समाज सुधार:
राजा राम मोहन राय ने सुधारवादी धार्मिक संघों की कल्पना सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन के उपकरणों के रूप में की।
उन्होंने वर्ष 1815 में आत्मीय सभा, वर्ष 1821 में कलकत्ता यूनिटेरियन एसोसिएशन और वर्ष 1828 में ब्रह्म सभा (जो बाद में ब्रह्म समाज बन गया) की स्थापना की।
उन्होंने जाति व्यवस्था, छुआछूत, अंधविश्वास और नशीली दवाओं के इस्तेमाल के विरुद्ध अभियान चलाया।
वह महिलाओं की स्वतंत्रता और विशेष रूप से सती एवं विधवा पुनर्विवाह के उन्मूलन पर अपने अग्रणी विचार और कार्रवाई के लिये जाने जाते थे।
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