तिल रखने की जगह नहीं है शहर ठसाठस भरे हुए उधर गाँव में पीपल के सारे पत्ते झरे हुए| ka arth
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increasing population and climate change
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तिल रखने की जगह नहीं है शहर ठसाठस भरे हुए उधर गाँव में पीपल के सारे पत्ते झरे हुए |
अर्थ : प्रदीप शुक्ला द्वारा रचित 'गाँव शहर' नामक कविता की पंक्तियों की इन पंक्तियों का भावार्थ यह है कि शहर ठसाठस तक भरते जा रहे हैं। लोग रोजगार की तलाश में गाँव से शहर की ओर चले आ रहे हैं। शहरों में तिल रखने की जगह नहीं बची है, जबकि उधर गाँव के गाँव खाली होते जा रहे हैं। वहां पीपल के पत्ते की झरते जा रहे हैं, क्योंकि उनकी देखभाल करने वाला कोई नही है। शहर भरते जा रहे हैं, गाँव खाली होते जा रहे हैं।
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