Hindi, asked by sharmaneena500, 10 months ago

टेलीविजन केंद्र के डायरेक्टर को पत्र लिखो कि कर्फ्यू दौरान विद्यार्थियों दे मनोरंजन चैनल पढ़ाई संबंधी प्रोग्राम दिखाया जाए​

Answers

Answered by khushilm15
2

Answer:

i hope it helps u

Explanation:

सेवा में,

दूरदर्शन अधिकारी

महोदय

विषय--कार्यक्रम में सुधार हेतु।

महोदय,

सविनय निवेदन यह है कि पिछले कुछ ‌महीने से दूरदर्शन में कोई सिनेमा नहीं दिखाई जा रही है । पहले हक्षर रविवार दूरदर्शन में शक्तिमान, साका लाका बूम-बूम दिखाया जाता था। जिससे बच्चों का मनोरंजन होता था।

परंतु अब तो बच्चों के लिए कोई प्रोग्राम ही नहीं होता। इसलिए आपसे निवेदन है कि आप टी.वी. पर कोई अच्छा कार्यक्रम लाए ताकि बच्चे मनोरंजन कर सकें।

धन्यवाद।

मोहन

दूरदर्शन प्रेमी

or

पतासड़कतारीख

सेवा मेरे

           निर्देशक,

           दूरदर्शन केंद्र,

           जालंधर।

           विषय: टीवी प्रोग्रामर में सुधार का सुझाव

महोदय,

           टेलीविजन के बड़े पैमाने पर शुरूआत के साथ, देश के सामाजिक-आर्थिक जीवन में एक और ऐतिहासिक स्थल हासिल किया गया है। भारत जैसे तेजी से विकासशील देश में जब नए मूल्य जमीन प्राप्त कर रहे हैं, तो टेलीविजन की भूमिका शायद ही अतिरंजित हो सकती है।

           जलंधर दूरदर्शन केंद्र द्वारा प्रसारित कई कार्यक्रम अत्यधिक सराहनीय हैं। इनमें 'पारिवारन लाई', 'मेरा पिंड मेरे खेत', 'वर्ल्ड ऑफ स्पोर्ट्स' शामिल हैं। वे काफी शिक्षित, जानकारीपूर्ण और मनोरंजक हैं। लेकिन सीर्रेन स्कीट्स और धारावाहिकों के प्रसारण प्रसारण चिह्न तक नहीं हैं। डायरेक्ट प्रीचिंग मार्स विचार का बहुत मकसद है। नाटक और स्कीट में सुधार के लिए एक बड़ा गुंजाइश है। इसके अलावा, विभिन्न कार्यक्रमों में दिशा, संगीत और अभिनय में सुधार की आवश्यकता है। फिल्मों और स्कीटों की पुनरावृत्ति से बचा जाना चाहिए।

           जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से चुने गए कुछ अच्छे टीवी फिल्मों को प्रसारण किया जाना चाहिए। अच्छी फीचर फिल्मों को भी प्रसारण किया जाना चाहिए। घोषणाएं और समाचार पढ़ने के दौरान उद्घोषक और समाचार पाठकों को अपने उच्चारण का ख्याल रखना चाहिए।

           मुझे उम्मीद है कि इन सुझावों को अधिकारियों का ध्यान मिलेगा।

आपको धन्यवाद,

आपका आभारी,

एक्स वाई जेड

Answered by khushilm2007
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Answer:

Explanation:

अपने एक लेख में प्रेमचंद बताते हे की जीवन में साहित्य का क्या महत्व हे ? क्या स्थान हे क्यों हे ? आज की भागती दौड़ती जिंदगी में इंसान किसी चीज़ से सबसे ज़्यादा दूर हो रहा हे तो साहित्य भी हे इसके दुष्परिणाम भी साफ़ तौर पर देखे जा सकते हे लोगो की अच्छा कहने सुनने की एक दुसरे को समझने की रोचक बातचीत की क्षमता कम हो रही हे कारण साफ़ हे की दिमाग और मन दोनों की ही खुराक पढ़ना और साहित्य होता ही हे टी वी इंटरनेट और दुसरे माध्यम जीवन में साहित्य का स्थान बिलकुल नहीं ले सकते हे प्रेमचंद बड़े ही सुन्दर शब्दों में बताते हे की जीवन में साहित्य का क्या महत्व हे ?

”साहित्य का आधार जीवन हे इसी नीव पर साहित्य की दीवार कड़ी होती हे उसकी अटारिया मीनार और गुम्बंद बनते हे लेकिन बुनियाद मिटटी के नीचे दबी पड़ी हे उसे देखने का भी जी नहीं चाहेगा जीवन परमात्मा की सर्ष्टि हे इसलिए अंनत हे , अगम्य हे साहित्य मनुष्य की सर्ष्टि हे इसलिए सुबोध हे सुगम और मर्यादा से परिमित हे जीवन परमात्मा को अपने कामो का जवाबदेह हे या नहीं , हमें मालूम नहीं लेकिन साहित्य तो मनुष्य के सामने जवाबदेह हे इसके लिए कानून हे जिससे वह इधर उधर नहीं हो सकता हे ”

”जीवन का उद्देश्य ही आनंद हे मनुष्य जीवन पर्यन्त आनंद की खोज में लगा रहता हे किसी को वह रत्न द्र्वय धन से मिलता हे किसी को भरे पुरे परिवार से किसी को लम्बा चौड़े भवन से , किसी को ऐश्वर्य से , लेकिन साहित्य का आनंद इस आनंद से ऊँचा हे , इससे पवित्र हे , उसका आधार सुन्दर और सत्य हे वास्तव में सच्चा आनंद सुन्दर और सत्य से मिलता हे उसी आनंद को दर्शाना वही आनंद उत्पन्न करना साहित्य का उद्देशय हे , ऐश्वर्य आनंद में ग्लानि छिपी होती हे . उससे अरुचि हो सकती हे पश्चाताप की भावना भी हो सकती हे पर सुन्दर से जो आनंद प्राप्त होता हे वह अखंड अमर हे .” ” जीवन क्या हे – ? जीवन केवल जिन खाना सोना और मर जाना नहीं हे . यह तो पशुओ का जीवन हे मानव जीवन में भी यही सब प्रवृत्तियाँ होती हे क्योकि वह भी तो पशु हे पर उसके उपरांत कुछ और भी होता हे उसमे कुछ ऐसी मनोवृत्तियां होती हे जो प्रकर्ति के साथ हमारे मेल में बाधक होती हे जो इस मेल में सहायक बन जाती हे जिन प्रवृत्तियाँमें प्रकर्ति के साथ हमारा सामंजस्य बढ़ता हे वह वांछनीय होती हे जिनमे सामंजस्य में बाधा उत्पन्न होती हे , वे दूषित हे . अहंकार क्रोध या देष हमारे मन की बाधक प्रवृत्तियाँ हे . यदि हम इन्हे बेरोकटोक चलने दे तो निसंदेह वो हमें नाश और पतन की और ले जायेगी इसलिए हमें उनकी लगाम रोकनी पड़ती हे उन पर सायं रखना पड़ता हे . जिससे वे अपनी सीमा से बाहर न जा सके हम उन पर जितना कठोर संयम रख सकते हे उतना ही मंगलमय हमारा जीवन हो जाता हे ”

” साहित्य ही मनोविकारों के रहस्यों को खोलकर सद्वृत्तियो को जगाता हे साहित्य मस्तिष्क की वस्तु बल्कि ह्रदय की वस्तु हे जहा ज्ञान और उपदेश असफल हो जाते हे वह साहित्य बाज़ी मार ले जाता हे साहित्य वह जादू की लकड़ी हे जो पशुओ में ईट पत्थरों में में पेड़ पौधों में विश्व की आत्मा का दर्शन करा देता हे ”

”जीवन मे साहितय की उपयोगिता के विष्य मे कभी कभी संदेह किया जाता हे कहा जाता हे की जो स्वभाव से अच्छे हे वो अच्छे ही रहेंगे चाहे कुछ भी पढ़े जो बुरे हे वो बुरे ही रहेंगे चाहे कुछ भी पढ़े . इस कथन मे सत्‍य की मात्रा बहुत कम हे इसे सत्य मान लेना मानव चरित्र को बदल देना होगा मनुष्य सवभाव से देवतुल्य हे जमाने के छल प्रपंच या परीईस्थितियो से वशीभूत होकर वह अपना देवत्य खो बेठता हे . साहित्य इसी देवत्व को अपने स्थान पर प्रतिष्टित करने की चेष्टा करता हे उपदेशो से नहीं,नसीहतो से नहीं भावो से मन को स्पंदित करके , मन के कोमल तारो पर चोट लगाकर प्रकर्ति से सामंजस्य उत्पन्न करके . हमारी सभ्यता साहित्य पर ही आधारित हे . हम जो कुछ हे साहित्य के ही बनाय हे विश्व की आत्मा के अंतर्गत राष्ट्र या देश की आत्मा एक होती हे इसी आतमा की प्रतिध्‍वनि हे ‘ साहित्य ‘ ”

”भारतीय साहित्य का आदर्श उसका त्याग और उत्सर्ग हे किसी राष्ट्र की सबसे मूलयवान संपत्ति उसके साहित्यिक आदर्श होते हे व्यास और वाल्मीकि ने जिन आदर्शो की सर्ष्टि की वो आज भी भारत का सर ऊँचा किये हुए हे राम अगर वाल्मीकि के सांचे में न ढलते तो राम न रहते .यह सत्य हे की हम सब ऐसे चरित्रों का निर्माण नहीं कर सकते पर धन्वन्तरि के एक होने पर भी इस संसार में वैद्दो की आवशयकता हे और रहेगी ” कलम हाथ में लेते ही हमारे सर पर भारी जिम्मेदारी आ जाती हे . साधारणतः युवावस्था में हमारी पहली निगाह विध्वंस की और ही जाती हे हम यथार्थ वाद के परवाह में बहने लगते हे बुराइयो के नग्न चित्र खीचने में कला की कसौटी समझने लगते हे यह सताय हे की कोई मकान गिराकर ही उसकी जगह कोई नया मकान बनाया जाता हे पुराने ढकोसलों और बंधनो को तोड़ने की जरुरत हे पर इसे साहित्य नहीं कह सकते हे साहित्य तो वही हे साहित्य की मर्यादा का पालन करे ”

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