Sociology, asked by rsnail8772, 11 months ago

टेलीविज़न के माध्यम में जो परिवर्तन होते रहे हैं उनकी रूपरेखा प्रस्तुत करें। चर्चा करें।

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Answered by adhvaith2007
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Answer: हिन्दी टेलीविजन का आरम्भ बहुत धीमा था किन्तु उसके बाद इसने गति पकड़ी और इस समय भारत में हिन्दी टेलीविजन चैनेलों की बाढ आ गयी है।

भारत में अपने आरंभ से लगभग 30 वर्ष तक टेलीविज़न की प्रगति धीमी रही किंतु वर्ष 1980 और 1990 के दशक में दूरदर्शन ने राष्ट्रीय कार्यक्रम और समाचारों के प्रसारण के ज़रिये हिंदी को जनप्रिय बनाने में काफी योगदान किया। वर्ष 1990 के दशक में मनोरंजन और समाचार के निज़ी उपग्रह चैनलों के पदार्पण के उपरांत यह प्रक्रिया और तेज हो गई। रेडियो की तरह टेलीविज़न ने भी मनोरंजन कार्यक्रमों में फ़िल्मों का भरपूर उपयोग किया और फ़ीचर फ़िल्मों, वृत्तचित्रों तथा फ़िल्मों गीतों के प्रसारण से हिंदी भाषा को देश के कोने-कोने तक पहुंचाने के सिलसिले को आगे बढ़ाया। टेलीविज़न पर प्रसारित धारावाहिक ने दर्शकों में अपना विशेष स्थान बना लिया। सामाजिक, पौराणिक, ऐतिहासिक, पारिवारिक तथा धार्मिक विषयों को लेकर बनाए गए हिंदी धारावाहिक घर-घर में देखे जाने लगे। रामायण, महाभारत हमलोग, भारत एक खोज जैसे धारावाहिक न केवल हिंदी प्रसार के वाहक बने बल्कि राष्ट्रीय एकता के सूत्र बन गए। देखते-ही-देखते टीवी कार्यक्रमों के जुड़े लोग फ़िल्मी सितारों की तरह चर्चित और विख्यात हो गए। समूचे देश में टेलीविज़न कार्यक्रमों की लोकप्रियता की बदौलत देश के अहिंदी भाषी लोग हिंदी समझने और बोलने लगे।

‘कौन बनेगा करोड़पति’ जैसे कार्यक्रमों ने लगभग पूरे देश को बांधे रखा। हिंदी में प्रसारित ऐसे कार्यक्रमों में पूर्वोत्तर राज्यो, जम्मू-कश्मीर और दक्षिणी राज्यों के प्रतियोगियों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और इस तथ्य को दृढ़ता से उजागर किया कि हिंदी की पहुंच समूचे देश में है। विभिन्न चैनलों ने अलग-अलग आयु वर्गों के लोगों के लिए आयोजित प्रतियोगिताओं के सीधे प्रसारणों से भी अनेक अहिंदीभाषी राज्यों के प्रतियोगियो ने हिंदी में गीत गाकर प्रथम और द्वित्तीय स्थान प्राप्त किए। इन कार्यक्रमों में पुरस्कार के चयन में श्रोताओं द्रारा मतदान करने के नियम ने इनकी पहुंच को और विस्तृत कर दिया। टेलीविज़न चैनलों पर प्रसारित किए जा रहे तरह-तरह के लाइव-शो में भाग लेने वाले लोगों को देखकर लगता ही नहीं कि हिंदी कुछ ख़ास प्रदेशों की भाषा है। हिंदी फ़िल्मों की तरह टेलीविज़न के हिंदी कार्यक्रमों ने भी भौगोलिक, भाषाई तथा सांस्कृतिक सीमाएं तोड़त दी हैं।

Explanation:

Answered by dcharan1150
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आज के समय में हर एक परिवार में टेलीविजन मौजूद हैं। अकसर कहा जाता है की, इंसान जो देखता हैं उसका उसके दिमाग के ऊपर बहुत गंभीर रूप से प्रभाव पड़ता हैं। इसलिए टेलीविजन में जो भी प्रदर्शित होता हैं, उसका लोगों के ऊपर प्रभाव लाज़िमी हैं।

वैसे हर एक चीज़ की ही तरह टेलीविजन के दोनों ही अच्छे व बुरे पक्ष हैं। हालांकि में मानता हूँ की, टेलीविजन के माध्यम से लोगों के अंदर जागरूकता फैलाई जाती हैं, परंतु खेद की बात तो यह है की, आज टेलीविजन पर जागरूकता कम और मिथ्या प्रचार ज्यादा फैलाई जा रही हैं।

इसके अलावा मनोरंजन के नाम पर हो रहें कार्यक्रमों में जिस तरीके से पश्चिमी सभ्यता को बढ़ावा दिया जा रहा है, इससे यहीं प्रतीत होता है की हम लोगों ने अपनी संस्कृति को तिलांजलि दे दिए हों और इसका प्रभाव हमारे विचार, व्यवहार, रहन-सहन, पोशाक और खाने से ही दिखाई पड़ता हैं।

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