टेलीविज़न रेडियो से अधिक प्रभावकारी साधन क्यों है?
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टेलिविज़न व रेडियो धारावाहिकों का एक अहम तत्व उनकी कहानियों का अनंत चलता हुआ विस्तार होता है, जिसमें मुख्य कथाक्रम के अन्दर नई कहानियाँ आरम्भ होती है और फिर कई कड़ियों के दौर में विकसित होती हैं और फिर अंजाम पर पहुँचती हैं। कई ऐसी कहानियाँ एक-साथ चल सकती हैं और धारावाहिक लिखने-बनाने वाले अक्सर इनका रुख़ दर्शकों की बदलती रुचियों और भावनाओं के अनुसार बनाते जाते हैं। इसी तरह कहानी में मोड़ देकर उन पात्रों की भूमिका बढ़ा दी जाती है जो दर्शकों की रूचि रखें और उन्हें अक्सर निकाल दिया जाता है जिनमें दर्शकों को दिलचस्पी कम हो। भारत में 'हम लोग', 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी', 'ससुराल गेंदा फूल', 'यह रिश्ता क्या कहलाता है' और सीआईडी जैसे धारावाहिक बहुत सफल रहे हैं। १९८० के दशक में पाकिस्तान के 'धूप किनारे' और 'तन्हाईयाँ' जैसे धारावाहिक भी सफल रहे और भारत में भी देखे गए।[2] अमेरिका का 'गाइडिंग लाईट' (Guiding Light) नामक धारावाहिक १९३७ में रेडियो पर शुरू हुआ, १९५२ में टेलिविज़न पर स्थानांतरित हुआ और फिर २००९ में जाकर बंद हुआ - कुछ स्रोत इसे विश्व का सबसे लम्बे चलने वाला धारावाहिक बताते हैं