तिलचट्टा के शरीर मैं वायु कैसे प्रवेश करती हैं
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तिलचट्टा कीट वर्ग का एक सर्वाहारी, रात्रिचर प्राणी है जो अंधेरे में, गर्म स्थानों में, जैसे रसोई घर, गोदाम, अनाज और कागज के भंडारों में पाया जाता है। पंख से ढका हल्का लाल एवं भूरे रंग का इसका शरीर तीन भागों सिर, वक्ष और उदर में विभाजित रहता है। सिर में एक जोड़ी संयुक्त नेत्र पाया जाता है एवं एक जोड़ी संवेदी श्रृंगिकाएँ (एन्टिना) निकली रहती है जो भोजन ढूँढ़ने में सहायक होती हैं। वक्ष से दो जोड़ा पंख और तीन जोड़ी संधियुक्त टाँगें लगी रहती हैं जो इसके प्रचलन अंगों का कार्य करते हैं।[1] शरीर में श्वसन रंध्र पाये जाते हैं। उदर दस खंडों में विभक्त रहता है। छिपकली तथा बड़ी-बड़ी मकड़ियाँ इसके शत्रु हैं।
तिलचट्टे का शरीर २.५ सेण्टीमीटर से ४ सेण्टीमीटर लम्बा तथा १.५ सेण्टीमीटर चौड़ा होता है। शरीर ऊपर से नीचे की ओर चपटा एवं खंडयुक्त होता है। नर तिलचट्टा मादा तिलचट्टा से साधारणतः छोटा होता है।[2] तिलचट्टे का श्वसन तंत्र अनेक श्वासनलिकाओं से बनता है। ये नलिकाएँ बाहर की ओर श्वासरंध्रों द्वारा खुलती हैं। तिलचट्टे में दस जोड़े श्वासरंध्र होते हैं, दो वक्ष में और आठ उदर में। तिलचट्टे की श्रृंगिकाये तीन भागों में विभक्त होती है । जिसका आधारीय खंड स्केप मध्य खंड पेडिसेल ओर ऊपरी खंड फ्लेजिलम कहलाता है । तिलचट्टा बहुत जल्दी फैल जाता है
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