तौ लगु या मन-सदन मैं, हरि आर्व किहि बाट। विकट जटे जौ लगु निपट, खुद न कपट-कपाट।इस दोहे का प्रसंग व्याख्या कीजिए
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व्याख्या-
बिहारी लाल जी कहते हैं कि जिस प्रकार घर का दरवाजा बंद होने पर उसमें कोई तब तक प्रवेश नहीं कर सकता है जब तक कि उसका दरवाजा ना खोला जाए, उसी प्रकार मनुष्य जब तक अपने मन के छल एवं कपट रूपी दरवाजे को हमेशा के लिए नहीं खोल देता है।
तब तक मनुष्य के मन रूपी घर में भगवान प्रवेश नहीं कर सकते हैं। अर्थात यदि ईश्वर की प्राप्ति करनी है तो मनुष्य को अपने मन से छल कपट को दूर कर उसे निर्मल बनाना होगा।
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