तिलक तथा धर्म
तिलक, एक श्रद्धालु हिन्दू तथा आर्यधर्म के अनुयायी होने पर भी पुरातन-पंथी नहीं थे। वह
एक धार्मिक प्रतिक्रियावादी भी नहीं थे, यद्यपि उस समय के कुछ सुधारकों ने उन्हें ऐसा
र उनकी निन्दा भी की थी। उन्होंने बलपूर्वक यह दावा किया कि भारतीय धर्म 19वीं
समझकर
शती के भौतिकवाद तथा उपयोगितावाद जैसी यूरोपीय मान्यताओं से मेल नहीं खाता।
उनका विश्वास था कि हिन्दुत्व भारत की अवनति का कारण नहीं था । बल्कि उसकी
अवनति केवल इसलिए हुई कि लोगों ने धर्म को छोड़ दिया था । तिलक की हिन्दू शास
में दृढ़ श्रद्धा थी। 'गीता रहस्य' से प्रमाणित होता है कि तिलक की कृष्ण के प्रति बड़ी श्रद्धा
थी और गीता के उपदेशों में उनकी गहन आस्था थी । कट्टर सनातनी होने के नाते वह
भगवान कृष्ण को अवतारी पुरुष मानते थे। उन्हें अपने धर्म पर गर्व था। उनकी मान्यतानुसार,
परमात्मा तथा आत्मा द्वारा मुक्ति प्राप्त करने के उपायों का ज्ञान धर्म के अन्तर्गत है।
तिलक सभी धार्मिक संस्कारों तथा अनुष्ठानों के विरोधी नहीं थे । हाँ, वह इनमें से
कुछ
संस्कारों में परिवर्तित परिस्थितियों के अनुरूप परिवर्तन अवश्य चाहते थे । किन्तु वह इनका
उस समय तक पालन करते रहने के पक्ष में थे, जब तक इनमें परिवर्तन नहीं किया जाता।
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You are looking like a donkey...!!
sorry brother its a dare for me....dont take it seriously...!!
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The velocity of an object is the rate of change of its position with respect to a frame of reference, and is a function of time. ... Velocity is a physical vector quantity; both magnitude and direction are needed to define it.
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