तुलसी के अनुसार दया का मूल । *
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पाप
अभिमान
विपत्त
धर्म
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धर्म
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दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान. तुलसी दास जी कहते हैं धर्म का मूल भाव ही दया हैं इसलिए कभी दया नहीं त्यागनी चाहिए.
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