Hindi, asked by afro3376, 1 year ago

तुलसी की समन्वय भावना को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए

Answers

Answered by shishir303
76

Answer:

महाकवि तुलसीदास हिन्दी साहित्य के प्रबुद्ध कवि एवं दार्शनिक थे। उन्होंने अपने काव्यों के माध्यम से हिंदी साहित्य समन्वय की भावना को प्रस्तुत किया है वो भारतीय जनमानस पर एक अमिट प्रभाव छोड़ती है।

उनके काव्य की सुंदर काव्य शैली और उसका धार्मिक स्वरूप जनमानस के हृदय में एक विशेष स्थान बना लेता है। तुलसीदास का काव्य एक कवि की प्रेरणा ही नहीं बल्कि एक गहरे अध्ययन व चिंतन का वह जागरूक स्वरूप है जिसे उन्होंने ने सोच-समझकर प्रस्तुत किया है और इसीलिए इसका समन्वय प्रयास उनकी लोकप्रियता का एक प्रमुख कारण बन गया।

तुलसीदासजी का व्यक्तित्व ही अनेक विविधताओं से भरा है। जहाँ आर्थिक विपन्नता से इन्हें अपने जीवन आरम्भिक काल कष्ट मे गुजारना पड़ा वहीं इन्हें आर्थिक संपन्नता का समय भी देखा।

तुलसीदास भारतीय काव्यजगत के लोकनायक थे  उन्होंने अपने काव्यों में समन्वयवादी दृष्टि का परिचय दिया है और अपना एक निश्चित दार्शनिक मत स्थापित किया जो रचनाओं में रामचरितमानस और विनयपत्रिका में दिखायी देता है।

राजा और प्रजा के बीच गहरी खाई बनती जा रही है जबकि राजा और प्रजा से कही अधिक श्रेष्ठ, उन्नत और महान समझा जाता था वह ईश्वर का प्रतिनिधि भी था। ऐसे में तुलसी ने बड़ी ही निपुणता के साथ उन अशिक्षित, अयोग्य राजाओ की आलोचना करते हुए लिखा है-  

राजा और प्रजा के बढ़ती विषमता पर उन्होंने प्रहार करते हुये कहा...

"गोंड़ गँवार नृपाल कलि, यवन महा महिपाल।

साम न दाम न भेद, कलि, केवल दंड कराल।।

भक्ति और ज्ञान भेद को मिटाते हुये उन्होंने कहा...

"कहहि सन्त मुनि बेद पुराना।

नहि कुछ दुर्लभ ग्यान समाना।।

हर जीव में ईश्वर व्याप्त है इस पर उन्होंने कहा...

‘‘ईश्वर अंस जीव अबिनासी।

चेतन अमल सहज सुखरासी।।

Similar questions