तुलसी मीठे वचन ते सुख उपजत चहुँ ओर।
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर ।। anuched
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कोई व्यक्ति किसी दिन दफ्तर में देर से आता है | देर से आने का कारण पूछने के बजाये उससे यदि ऐसा कहा जाए कि: "रोज आप दफ्तर में समय से आ जाते थे | आज क्या हो गया जो समय पर नहीं आ सके?" …तो उसे बात बुरी न लगेगी और देर से आने का सही कारण भी वह निःसंकोच बता देगा |
कुटुम्ब-परिवार में भी वाणी का प्रयोग करते समय यह अवश्य ख्याल रखा जाए कि मैं जिससे बात करता हूँ वह कोई मशीन नहीं है, रोबोट नहीं है, लोहे का पुतला नहीं है, मनुष्य है | उसके पास दिल है | हर दिल को स्नेह, सहानुभूति, प्रेम और आदर कि आवश्यकता होती है | अतः अपने से बड़ों के साथ विनययुक्त व्यवहार, बराबरी वालों से प्रेम और छोटों के प्रति दया तथा सहानुभूति-सम्पन्न तुम्हारा व्यवहार जादुई असर करता है |
किसी के दुकान-मकान, धन-दौलत छीन लेना कोई बड़ा जुल्म नहीं है | उसके दिल को मत तोड़ना क्योंकि उस दिल में दिलबर खुद रहता है | बातचीत के तौर पर आपसी स्नेह को याद रखकर सुझाव दिये जायें तो कुटुम्ब मैं वैमनस्य खड़ा नहीं होगा |
किसी एक पति ने अपनी पत्नी से कहा कि आज भोजन अच्छा नहीं बना | इस पर पत्नी ने झुंझलाकर कहा: "किसी और जगह, होटल में जाकर खा लो या कोई दूसरी मेम साहब बुला लो |" पति को यह बात बुरी लगी | उसने भोजन की थाली दूर खिसका दी |
पत्नी अगर आपसी स्नेह को ध्यान में रखकर यह कहती कि: "कल से में विशेष ध्यान रखकर भोजन बनाऊँगी … आपको शिकायत करने का मौका नहीं मिलेगा …" … तो ऐसी नौबत नहीं आती और स्नेह का पतला तंतु टूटने न पाता | अन्न का अनादर भी न होता |
वैसे ही अगर बाप अपने बेटे को कहता है कि: "परीक्षा में तुम्हारे नम्बर ठीक नहीं आए, तुम नालायक हो …" … तो बच्चे के मानस पर उसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा | इसके बदले अगर बाप यह कहे कि: "बेटा ! मेहनत किया करो | एकाग्र होने के लिए थोड़ा ध्यान किया करो | इससे तुम अवश्य अच्छे नम्बर ला सकोगे |" इस प्रकार कहने पर बच्चे का उत्साह बढेगा | पिता के लिए आदर भी बना रहेगा और वह आगे चलकर मेहनत करके अच्छे नम्बर से पास होने का प्रयत्न करेगा |
दुकानदार के पास कोई ग्राहक आकर कहे कि: "यह चीज़ आपके पास से ले गया था, अच्छी नहीं है | वापस ले लो |" … तो उस समय दुकानदार को उसके साथ तीखा व्यवहार नहीं करना चाहिए | उसे कहना चाहिए कि: "अगर आपको यह चीज़ पसंद नहीं है तो कोई बात नहीं | मेरे पास इसकी और भी कई किस्में हैं, दिखता हूँ | शायद आपको पसंद आ जाए |" इस प्रकार ग्राहक की प्रसन्नता का ख्याल रखकर स्नेह और सहानुभूति का व्यवहार करना चाहिए | इससे वह दुकानदार का पक्का ग्राहक हो जाएगा |
"तुम्हें यह काम करना ही पड़ेगा |" नौकर से कहो कि: "क्या यह काम कर दोगे?" ...तो वह नौकर उत्साह से आपकी प्रसन्नता के लिए वह काम कर देगा | अन्यथा, उसे वह काम बोझ प्रतीत होगा और वह उससे छुटकारा पाने के लिए विवश होकर करेगा जिसमें उसकी प्रसन्नता लुप्त हो जायेगी और काम भी ऐसा ही होगा |
कहने के ढंग में मामूली फर्क कर देने से कार्यदक्षता पर बहुत प्रभाव पड़ता है | अगर किसीसे काम करवाना हो तो उससे कहें कि अगर आपके लिए अनुकूल हो तो यह काम करने की कृपा कऐसा कहने की बजाये यह रें |
बातचीत के सिलसिले में महत्ता दूसरों को देनी चाहिए, न कि अपने आपको | ढंग से कही हुए बात प्रभाव रखती है और अविवेकपूर्वक कही हुई वही बात विपरीत परिणाम लाती है |
दूसरों से मिलजुलकर काम वही कर सकता है जो अपने अहंकार को दूसरों पर नहीं लादता |