Science, asked by abhayjaiswal686, 5 months ago

तुलसी संत समान चित, हितअनहित नहीं कोय।
अंजलिगतसुभसुमनजिमि,समसुगंधकरदोय॥
गोधन गजधन बाजिधन, और रतनधन खान।
जब आवत संतोष धन, सब धन धूरि समान ॥
आवत हिय हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह।
तुलसी तहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह ॥
तुलसी संत सुअंबु तरु, फूलि फलहिं पर हेत।
इतते ये पाहन हनत, उतते वे फल देत ॥
मुखिया मुख-सौं चाहिए खान-पान को एक।
पाले-पोसे सकल अंग, तुलसी सहित विवेक ॥​

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Answered by mahi2587
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Explanation:

तुलसी संत समान चित, हितअनहित नहीं कोय। अंजलिगतसुभसुमनजिमि,समसुगंधकरदोय॥ गोधन गजधन बाजिधन, और रतनधन खान। जब आवत संतोष धन, सब धन धूरि समान ॥ आवत हिय हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह। तुलसी तहाँ न जाइए, कंचन बर

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