तुलसीदास जी के अनुसार राम जी के निर्गुण प्रेशर का गाना पति करने से कौन सी सी चारपाई मिलते हैंतुलसीदास जी के अनुसार राम जी के अनिरुद्ध प्रसाद का गणपतए करने से कौन से चार फल मिलते हैं
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राम कबीर और तुलसी दोनों के इष्ट हैं. इनके रामों की तुलना हुई है. असमानता की ज़्यादा हुई है, समानता की कम. निराकार निर्गुण मत वाले संतों का विश्व-बोध अलग है. वे जैसे सबकुछ छोड़ते जाते हुए सीधे परम सत्ता के पास पहुँचना चाहते हैं. बहुत निषेध के बाद उनकी विधेयात्मकता शुरू होती है। निषेध सगुण भक्तों के यहाँ भी है किन्तु अपेक्षाकृत कम है। कबीर में भक्ति के अलावा कुंडलिनी योग भी काफी है। उनके यहां भक्ति और कुंडलिनी योग का अनुपात क्या है – इस विषय में उल्लेखनीय बात यह ज़रूर है कि वे कुंडलिनी योग के प्रसंग में राम का उल्लेख नहीं करते हैं। कबीर अपने राम का निर्माण मौलिक रूप से विभिन्न घटकों के संयोजन में करते हैं।
कबीर के राम का निर्माण जिन घटकों से हुआ है उनमें सबसे प्रमुख काल है। काल पूरे भक्ति काव्य में समाहित है। तुलसीदास के राम का कोदंड काल है। किन्तु काल की जितनी निर्णायक एवं व्यापक भूमिका कबीर के यहाँ है किसी अन्य कवि के यहां नहीं। मेरा मतलब भक्त कवि के यहाँ। कबीर के काल पर बात करते हुए मुझे वाल्मीकि रामायण का एक प्रसंग उल्लेखनीय लगता है। राम के पास काल तापस वेष में आया। काल तापस अपने तेज से प्रज्जवलित होते और अपनी प्रखरों किरणों से दग्ध करते हुए से जान पड़ते थे।
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राम कबीर और तुलसी दोनों के इष्ट हैं. इनके रामों की तुलना हुई है. असमानता की ज़्यादा हुई है, समानता की कम. निराकार निर्गुण मत वाले संतों का विश्व-बोध अलग है. वे जैसे सबकुछ छोड़ते जाते हुए सीधे परम सत्ता के पास पहुँचना चाहते हैं. बहुत निषेध के बाद उनकी विधेयात्मकता शुरू होती है। निषेध सगुण भक्तों के यहाँ भी है किन्तु अपेक्षाकृत कम है। कबीर में भक्ति के अलावा कुंडलिनी योग भी काफी है। उनके यहां भक्ति और कुंडलिनी योग का अनुपात क्या है – इस विषय में उल्लेखनीय बात यह ज़रूर है कि वे कुंडलिनी योग के प्रसंग में राम का उल्लेख नहीं करते हैं। कबीर अपने राम का निर्माण मौलिक रूप से विभिन्न घटकों के संयोजन में करते हैं।
कबीर के राम का निर्माण जिन घटकों से हुआ है उनमें सबसे प्रमुख काल है। काल पूरे भक्ति काव्य में समाहित है। तुलसीदास के राम का कोदंड काल है। किन्तु काल की जितनी निर्णायक एवं व्यापक भूमिका कबीर के यहाँ है किसी अन्य कवि के यहां नहीं। मेरा मतलब भक्त कवि के यहाँ। कबीर के काल पर बात करते हुए मुझे वाल्मीकि रामायण का एक प्रसंग उल्लेखनीय लगता है। राम के पास काल तापस वेष में आया। काल तापस अपने तेज से प्रज्जवलित होते और अपनी प्रखरों किरणों से दग्ध करते हुए से जान पड़ते थे।
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