तुलसीदास जी ने अवधेश के कितने बालकों का
वर्णन किया है?
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O तुलसीदास जी ने अवधेश के कितने बालकों का वर्णन किया है?
► तुलसीदास जी ने अवधेश के चार बालकों का वर्णन किया है।
तुलसीदास जी कहते हैं, कि...
तन की दुति स्याम सरोरुह लोचन कंज की मंजुलताई हरैं।
अति सुन्दर सोहत धूरि भरे छबि भूरि अनंग की दूरि धरैं।
दमकैं दँतियाँ दुति दामिनि ज्यौं किलकैं कल बालबिनोद करैं।
अवधेस के बालक चारि सदा तुलसी-मन-मंदिर में बिहरैं
अर्थात तुलसीदास जी कहते हैं, कि उनके शरीर की आभा नीलकमल के जैसी है तथा उनकी नयन कमल की शोभा को भी हर लेते हैं। धूल से लथपथ होने पर भी वे बड़े सुंदर और आकर्षक दिखाई पड़ रहे हैं। उनके सामने कामदेव छवि भी फीकी पड़ रही है। उनके नन्हें-नन्हें दाँत बिजली की तरह चमक रहे हैं। वे किलक-किलक कर मनोहारी बाल सुलभ लीलाएं कर रहे हैं। अयोध्यापति दशरथ के वे चारों बालक मेरे मन-मंदिर में विहार करें।
कबहूँ ससि मागत आरि करैं कबहूँ प्रतिबिंब निहारि डरैं।
कबहूँ करताल बजाइकै नाचत मातु सबै मन मोद भरैं।
कबहूँ रिसिआइ कहैं हठिकै पुनि लेत सोई जेहि लागि अरैं।
अवधेस के बालक चारि सदा तुलसी-मन-मंदिर में बिहरैं॥
अर्थात वे चारों बालक कभी तो चंद्रमा को माँगने की जिद करने लगते हैं, तो कभी अपनी ही परछाई देखकर डर जाते हैं। कभी वे अपने हाथों से ताली बजा-बजाकर उछलते-कूदते, नाचते-गाते हैं, जिसे देखकर तीनों माताओं के हृदय आनंद से भर उठते हैं, तो कभी कभी हठ-पूर्वक किसी वस्तु को पाने की जिद करते हैं, और उसे पाकर ही मानते हैं। अयोध्यापति दशरथ के वे चारों बालक मेरे मन मंदिर में विहार करें।
इस तरह तुलसीदास ने कवितावली में अपने दो दोहों के माध्यम से अवधेश यानि दशरथ के चार बालकों यानि राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न का वर्णन किया है।
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