तुलसीदास की भगतिभावना क्या है वर्णन करों ?
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तुलसीदास जी की भक्ति भावना के आगे काव्य दोष बौने!
तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में श्री राम की तुलना
जनक दरवार में मंच से उतरते समय शेर से की और जब वे पांडाल में धनुष की तरफ चलते हैं तो उन्हें हाथी की उपमा दी कि श्री राम हाथी की तरह चले। इस पर आलोचकों ने गोस्वामी जी से पूछा कि "आपने हीनोपमा नामक काव्य दोष कर दिया, श्री राम को शेर से हाथी बना दिया!"
तब तुलसीदास जी ने कहा कि श्री राम की विभिन्न देशों से आये राजा लोग तरह तरह की निन्दा कर रहे थे कि 'कैसे कैसे योद्धा शिव धनुष को नहीं उठा पाये तो यह कोमल बालक कैसे उठा पायेगा!' आदि।
जब लोग निन्दा करें तो हाथी की तरह ध्यान नहीं देते हुए आगे बढ़ना चाहिए। कहते भी हैं"कुत्ते भौंकते रहते हैं और हाथी चले जाते हैं।"
मैंने यह बात पूज्य मुरारी बापू की राम कथा में सुनी।
श्री राम द्वारा धनुष भंग करने के बाद का
छन्द(रा.च.मा. में)
भरे भुवन घोर कठोर रव रबि बाजि तजि मारगु चले।
चिक्करहिं दिग्गज डोल महि अहि कोल कूरुम कलमले॥
सुर असुर मुनि कर कान दीन्हें सकल बिकल बिचारहीं।
कोदंड खंडेउ राम तुलसी जयति बचन उचारहीं॥
भावार्थ-
घोर, कठोर शब्द से (सब) लोक भर गए, सूर्य के घोड़े मार्ग छोड़कर चलने लगे। दिग्गज चिग्घाड़ने लगे, धरती डोलने लगी, शेष, वाराह और कच्छप कलमला उठे। देवता, राक्षस और मुनि कानों पर हाथ रखकर सब व्याकुल होकर विचारने लगे। तुलसीदास कहते हैं; (जब सब को निश्चय हो गया कि) राम ने धनुष को तोड़ डाला, तब सब 'राम की जय' बोलने लगे।
छात्रोपयोगी-
छन्द- शब्द 'चद्' धातु से बना है जिसका अर्थ है 'आह्लादित करना', 'खुश करना'। यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की नियमित संख्या के विन्याय से उत्पन्न होता है। इस प्रकार, छंद की परिभाषा होगी 'वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं'। छंद का सर्वप्रथम उल्लेख 'ऋग्वेद' में मिलता है। जिस प्रकार गद्य का नियामक व्याकरण है, उसी प्रकार पद्य का छंद शास्त्र है।
तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में श्री राम की तुलना
जनक दरवार में मंच से उतरते समय शेर से की और जब वे पांडाल में धनुष की तरफ चलते हैं तो उन्हें हाथी की उपमा दी कि श्री राम हाथी की तरह चले। इस पर आलोचकों ने गोस्वामी जी से पूछा कि "आपने हीनोपमा नामक काव्य दोष कर दिया, श्री राम को शेर से हाथी बना दिया!"
तब तुलसीदास जी ने कहा कि श्री राम की विभिन्न देशों से आये राजा लोग तरह तरह की निन्दा कर रहे थे कि 'कैसे कैसे योद्धा शिव धनुष को नहीं उठा पाये तो यह कोमल बालक कैसे उठा पायेगा!' आदि।
जब लोग निन्दा करें तो हाथी की तरह ध्यान नहीं देते हुए आगे बढ़ना चाहिए। कहते भी हैं"कुत्ते भौंकते रहते हैं और हाथी चले जाते हैं।"
मैंने यह बात पूज्य मुरारी बापू की राम कथा में सुनी।
श्री राम द्वारा धनुष भंग करने के बाद का
छन्द(रा.च.मा. में)
भरे भुवन घोर कठोर रव रबि बाजि तजि मारगु चले।
चिक्करहिं दिग्गज डोल महि अहि कोल कूरुम कलमले॥
सुर असुर मुनि कर कान दीन्हें सकल बिकल बिचारहीं।
कोदंड खंडेउ राम तुलसी जयति बचन उचारहीं॥
भावार्थ-
घोर, कठोर शब्द से (सब) लोक भर गए, सूर्य के घोड़े मार्ग छोड़कर चलने लगे। दिग्गज चिग्घाड़ने लगे, धरती डोलने लगी, शेष, वाराह और कच्छप कलमला उठे। देवता, राक्षस और मुनि कानों पर हाथ रखकर सब व्याकुल होकर विचारने लगे। तुलसीदास कहते हैं; (जब सब को निश्चय हो गया कि) राम ने धनुष को तोड़ डाला, तब सब 'राम की जय' बोलने लगे।
छात्रोपयोगी-
छन्द- शब्द 'चद्' धातु से बना है जिसका अर्थ है 'आह्लादित करना', 'खुश करना'। यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की नियमित संख्या के विन्याय से उत्पन्न होता है। इस प्रकार, छंद की परिभाषा होगी 'वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं'। छंद का सर्वप्रथम उल्लेख 'ऋग्वेद' में मिलता है। जिस प्रकार गद्य का नियामक व्याकरण है, उसी प्रकार पद्य का छंद शास्त्र है।
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