तुलसीदास की जीवनी (जीवन परिचय) जन्म से मृत्यु त
No Spam Other Wise I Will Report You Or
Answers
Answer:
see it
Explanation:
Tulsidas, also known as Goswami Tulsidas, was a Ramanandi Vaishnava saint and poet, renowned for his devotion to the deity Rama. Wikipedia
Born: 1532, Soron
Died: 1623, Assi Ghat, Varanasi
Children: Tarak
तुलसीदास का जीवन परिचय : तुलसीदास के विषय में सुनते ही हमारे सामने सबसे पहले उस ग्रंथ का नाम आता है जो आज भारत के हर घर में पवित्रता के साथ रखा गया है। यह ग्रंथ आज भी पूज्यनीय है। इस ग्रंथ का नाम ‘रामचरितमानस‘ है। तुलसीदास को अनेक प्रकार से हम याद कर सकते हैं भक्त के रूप में कवि के रूप में या फिर एक सामान्य मनुष्य जो गृहस्थ जीवन और सन्यास के अंतर्द्वंद में रह गया। कवि के रूप में इन्हें हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल के रामभक्ति शाखा के अन्तर्गत रखा गया है।
परिचय
आज विभिन्न स्रोतों के उपलब्ध होने के कारण तुलसीदास के विषय में अनेक किवदंतियाँ और अनेक मिथक कथाएं फैल गई हैं। हम यहाँ बहुमान्य तथ्य की बात करेंगे। उनका जन्म 1511ई. को राजापुर गाँव में हुआ था। पिता आत्माराम दुबे और माता हुलसी देवी थी। कहा जाता है कि तुलसी के अभुक्तमूल नक्षत्र में पैदा होने के कारण उनके पिता ने उन्हें मुनिया नामक दासी को दे दिया था जिन्होंने उनका पालन-पोषण किया। गुरु नरहरिदास के सानिध्य में तुलसी भक्त बने। रत्नावली नामक स्त्री से तुलसी का विवाह हुआ और उसके कुछ वर्षों बाद ही तुलसी सन्यासी बन भ्रमण करने निकल जाते हैं। जिसके विषय में भी एक कथा है। जो अग्रलिखित है।
तुलसी के सन्यास ग्रहण करने की कथा
200px Goswami Tulsidas Awadhi Hindi Poet
एक बार रत्नावली अपने मायके चली जाती हैं और तुलसीदास अकेले घर पर रहते हैं। तुलसीदास का मन नहीं लगता है और वे रत्नावली के पास जाने का निश्चय करते हैं। उस दिन जोरों की बारिश हो रही थी। रत्नावली का घर नदी के पार था। ऐसा कहा जाता है कि तुलसीदास उस बारिश में लाश पर तैरकर और बड़े ही कठिनाई से रत्नावली के पास पहुँचते हैं। इस पर रत्नावली बड़ी क्रोधित होती हैं और कहती हैं- “लाज न आई आपको दौरे आएहु नाथ“ और आगे कहती हैं कि जिस प्रकार इस अस्थि और चर्म के देह से प्रेम है वैसी रघुनाथ में हो तो जीवन धन्य हो जाए और तब से तुलसी राम में रम गए।
तुलसीदास और रामायण
तुलसीदास को सदा एक भक्त के रूप में देखा जाता रहा है। हम उस कवि की कल्पना क्यों नहीं कर पाते जिसने एक ऐसा काव्य लिखा जिसे आज घरों में पूजा जा रहा है। फादर कामिल बुल्के और ए.के. रामानुजन जैसे विद्वानों के रिसर्च ने रामायण के 300 रूपों की बात बताई है। इसके साथ ही इन विभिन्न पुस्तकों में कथावस्तु आदि का भी बदलाव हुआ है। आज अकादमिक जगत में तुलसीदास के रामचरितमानस की अत्यधिक प्रशंसा होती है। इस ग्रंथ के विषय में तो यहाँ तक कहा जाता है कि रामचरितमानस की एक-एक अर्धाली पर एक-एक पी.एच.डी. हो सकती है।