तुलसीदास के सामान्य वादी दृष्टिकोण पर विस्तार से प्रकाश डालिए
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"तुलसीदासजी समन्वयवादी के साथ-साथ मर्यादावादी भी थे। समन्वय के आवेश में उन्होंने कही भी धर्म के असत् रूप और लोक धर्म की विरोधी प्रवृत्तियों से समझौता नहीं किया। लोक मर्यादा का उल्लंघन, चाहे वह किसी भी रूप में हो, उनके लिए असह्य था। उनके मतानुसार मर्यादा के बिना अपने सामाजिक कल्याण आकाश-कुसुम के समान है।
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