तुलसीदास किस प्रकार में ईश्वर की अविचल भक्ति पाने की बात करते हैं? 'विनय के पद' के आधार पर वर्णन करें
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तुलसीदास ने ईश्वर की अविचल भक्ति पाने के लिए प्रेम और भक्ति का मार्ग अपनाने की सलाह दी है।
तुलसीदास कहते हैं कि यदि ईश्वर को पाना है, तो जो ईश्वर को पाने की राह में जो बाधक हो वह चाहे निकटतम संबंधी ही क्यों ना हो, उसका परित्याग करने से भी संकोच नहीं करना चाहिए। तभी हम ईश्वर रूपी अविचल भक्ति को पा सकते हैं।
तुलसीदास ने कहा है कि ईश्वर अर्थात भगवान राम को यदि पाना है तो उनके प्रति अगाध प्रेम अपने हृदय में अगाध प्रेम उत्पन्न करना होगा और तन-मन-धन से उनकी भक्ति करनी होगी। तुलसीदास कहते हैं जिस व्यक्ति के मन में प्रभु श्रीराम के लिए प्रेम उत्पन्न हो गया उसका कल्याण ही कल्याण संभव है। जिस तरह विभीषण ने अपने भाई रावण का विरोध करके श्री राम की शरण ली, भरत ने अपनी माता कैकेई का विरोध किया और श्रीराम के वचनों का पालन किया। राजा बलि ने अपने गुरु शुक्राचार्य का परामर्श स्वीकार न करके श्री राम की बात मानी और ब्रज की गोपियों ने श्रीकृष्ण भक्ति के लिये अपने पतियों तक का परित्याग कर दिया और श्रीकृष्ण की भक्ति में डूब गईं। इस तरह इन व्यक्तियों ने ईश्वर रूपी परम आनंद को प्राप्त करने के लिए अपने परिजनों का परित्याग करने से भी संकोच नहीं किया।
Explanation:
Tulsidas mein kahan hai ki Swarg capital Bhakti pane ke liye Prem aur Bhakti ka Marg aap Banane padte Hai kavyam Ishwar Ishwar Rupaiya Vishal 45 sakte hain