तुलसीदास मुख्यतः अवधा
“एहि घाटतें थोरिक दूरि अहै कटि लौं जलु, थाह देखाइहों
जू
परसै पगधूरि तरै तरनी, घरनी घर क्या समुझाइहौं ज
Gran .
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