तुम भी हामिद की तरह किसी-न-किसी मेले में गए होगे, वहाँ तुमने क्या-क्या खरीदा और क्यों?
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तुम भी हामिद की तरह किसी न किसी मेले में गए होंगे, वहाँ तुमने क्या-क्या खरीदा और क्यों ?
उत्तर: दिपावली की छुट्टीयों के आखिर में हमारे धोलका तहसील के वौठा गाँव में बड़ा मेला लगता है ! इस गाँव में साबरमती नदी में सात नदियों का संगम होता है, इसलिए कार्तिक महिने की एकादशी से लेकर पूर्णिमां तक मेला लगता है ।
पिछली बार मैं अपने मित्रों के साथ इस मेले में गया था । यह मेला गुजरात का सब से बड़ा मेला है । यहाँ तरह- तरह की दुकाने लगी थी, जैसे कि मिठाईयों की दुकाने, खिलौनो की दुकाने, कपडों- बर्तनो की दुकाने, हिंडौला, झुला, चकरी, सर्कस आदि कई दुकाने थीं । मेरे पास पैसे कम थे । इसलिए मैं मेले में से कुछ काम की चीज लेना चाहता था । मैं और मेरे दोस्त पुरा मेला घुमें, पर मुझे कोई काम की चीज़ नज़र नहीं आई । आखिर हम मेले से बाहर नीकलने ही वाले थे, लेकिन आखरी कतार में कपडों तथा गरम चटाई, रजाई तथा स्वेटरों की दुकाने थी । घुमते- घुमते मुझे एक स्वेटर पसंद आया । मुझे याद आया कि पिताजी के पास पुराना स्वेटर था, जो ठंडी के दिनों में सिर्फ नाम का था । मै वह स्वैटर खरीदना चाहता था । इसलिए मैने दुकानदास से भाव पूछा । उसने पाँचसो रुपये कहा, लेकिन मेरे पास सिर्फ दो-सौ रुपये थे । मैने दुकानदार से ठीक-ठीक भाव लगाने के लिए कहा । उसने थोड़ी बहस करने के बाद कहा कि तीन सौ रुपयों से एक रुपया कम नहीं लूंगा । मैने भी हिम्मत करके कहा कि दो- सौ रुपए में देना है तो बोलो और मैं आगे चलने लगा । थोड़ा आगे जाने पर दुकानदार ने मुझे बुलाकर वह स्वैटर दे दिया ।
दिपावली की छुट्टीयों के आखिर में हमारे धोलका तहसील के वौठा गाँव में बड़ा मेला लगता है। | इस गाँव में साबरमती नदी में सात नदियों का संगम होता है, इसलिए कार्तिक महिने की एकादशी से लेकर पूर्णिमां तक मेला लगता है ।
पिछली बार मैं अपने मित्रों के साथ इस मेले में गया था । यह मेला गुजरात का सब से बड़ा मेला है । यहाँ तरह- तरह की दुकाने लगी थी, जैसे कि मिठाईयों की दुकाने, खिलौनो की दुकाने, कपड़ों- बर्तनो की दुकाने, हिंडौला, झुला, चक्ररी, सर्कस आदि कई दुकाने थीं। मेरे पास पैसे कम थें । इसलिए मैं मेले में से कुछ काम की चीज लेना चाहता था । मैं और मेरे दोस्त पुरा मेला घुमें, पर मुझे कोई काम की चीज़ नज़र नहीं आई। आखिर हम मेले से बाहर नीकलने ही वाले थे, लेकिन आखरी कतार में कपडों तथा गरम चटाई, रजाई तथा स्वेटरों की दुकाने थी । घुमते- घुमते मुझे एक स्वेटर पसंद आया । मुझे याद आया कि पिताजी के पास पुराना स्वेटर था, जो ठंडी के दिनों में सिर्फ नाम का था। मै वह स्वैटर खरीदना चाहता था। इसलिए मैने दुकानदास से भाव पूछा । उसने पाँचसो रुपये कहा, लेकिन मेरे पास सिर्फ दो सौ रुपये थे । मैने दुकानदार से ठीक-ठीक भाव लगाने के लिए कहा । उसने थोड़ी बहस करने के बाद कहा कि तीन सौ रुपयों से एक रुपया कम नहीं लूंगा। मैने भी हिम्मत करके कहा कि दो- सौ रुपए में देना है तो बोलो और मैं आगे चलने लगा । थोड़ा आगे जाने पर दुकानदार ने मुझे बुलाकर वह स्वैटर दे दिया ।
मै खुशी के मारे झुम रहा था। मेरे पिताजी भी बहुत खुश हुए और उन्होने दुसरे दिन मुझे फिर से दौ- सो रुपये दिए और कहा कि जाओ मेले में घुमकर आऔ । लेकिन इसबार तुम अपने लिए पैसे खर्च करना । मिठाईयाँ खाना, चकरी में बैठना, सर्कस देखना और खूब मज़े करना ।