तुम हो धरती के पुत्र न हिम्मत हारो
श्रम की पूंजी से अपना कांज संवारो
श्रम की सीपी में ही वैभव ढूंलता है
तब स्वाभिमान का दीपस्वयं जलता है।।
1) उपर्युक्त पद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए
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तुम हो धरती के पुत्र न हिम्मत हारो,
श्रम की पूँजी से अपना काज सँवारो।
श्रम की सीपी में ही वैभव पलता है,
तब स्वाभिमान का दीप स्वयं ही जलता है।।
भावार्थ : इस पद्यांश में कवि के कहने का तात्पर्य है, कि ये समय निरंतर परिवर्तनशील है। इसलिये कठिन परिस्थितियों से हार मत मानो। तुम धरती के पुत्र हो इसलिये तुम्हारा हिम्मत हारना बिल्कुल भी उचित नही है। तुम आगे बढ़ो तुम्हारे पास श्रम की पूंजी है, इस श्रम की पूंजी के बल अपने भाग्य को संवारो। श्रमजीवी जब श्रम करता है, तब उसके जीवन में वैभव आता है। श्रम करके अपना जो आगे बढ़ता है, उसके जीवन में स्वाभिमान की कमी नही होती।
इस पद्यांश का सही शीर्षक होगा...
— श्रम की महत्ता
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