तुम कुछ न करोगे, तो भी विश्व चलेगा ही,
फिर क्यों गर्वीले बन लड़ते अधिकारों को?
सो गर्व और अधिकार हेतु लड़ना छोड़ो,
अधिकार नहीं, कर्तव्य-भाव का ध्यान करो!
है तेज़ वही, अपने सान्निध्य मात्र से जो
सहचर-परिचर के आँसू तुरत सुखाता है,
उस मन को हम किस भाँति वस्तुतः सु-मन कहें,
औरों को खिलता देख, न जो खिल जाता है?
काँटे दिखते हैं जब कि फूल से हटता मन,
अवगुण दिखते हैं जब कि गुणों से आँख हटे;
उस मन के भीतर दुख कहो क्यों आएगा;
जिस मन में हों आनंद और उल्लास डटे!
यह विश्व व्यवस्था अपनी गति से चलती है,
तुम चाहो तो इस गति का लाभ उठा देखो,
व्यक्तित्व तुम्हारा यदि शुभ गति का प्रेमी हो
तो उसमें विभु का प्रेरक हाथ लगा देखो!
1 काव्याश में लोगों की किस प्रवृत्ति की ओर संकेत किया गया है?
i घमंडी प्रवृत्ति की ओर
ii लडाई की ओर
iii. अधिकारों की ओर
iv. त्याग की ओर
II काव्यांश में निहित संदेश है-
i अपने अधिकारों के लिए लड़ना
ii कर्तव्य भाव रखते हुए अधिकारों की लडाई को छोड़ना
iii. कर्तव्य भाव न रखते हुए अधिकारों की लडाई को छोड़ना
iv. कर्तव्य भाव न रखते हुए अधिकारों की लडाई करना
III कवि ने किस प्रकार के तेज को अपनाने को कहा है
i जो बहुत तेज होता है
ii जो प्रखर होता है
iii जिस से दुख दूर होता है
iv जिससे दुख बढ़ता है
IV काव्यांश में सु-मन किन्हे कहा गया है?
i जो अच्छे फूल है
ii जो पूरे खिलते हैं
iii जो खुशबू देते हैं
iv जो अपना मन सुंदर और स्वच्छ रखते हैं
V दुःख कैसे मन में प्रवेश नहीं कर पाता है?
i जो पहले से दुखी होता है
ii जिसके मन में उल्लास हो
iii जिसके मन में उल्लास ना हो
iv जो सुखी हो
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Answer:
- 1 घमंडी प्रवृत्ति कि और
- 2 करतव्यभाव रखते हूए अधिकारों की लडाई कोकण छोडना।
- 3 जिससे दूख दूर होता है
- जो अपना मन सुंदर और स्वच्छ रखता है
- 2 जिसके मन में उल्लास हो
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