Hindi, asked by komalpreetkaur10, 9 months ago

तुम कब जाओगे अतिथि 'पाठ का मूल भाव
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Answered by Anonymous
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लेखक के घर पर एक अतिथि चार दिनों से रह रहा है जिसे देखते हुए वे कहते हैं कि हे अतिथि ! तुम्हें देखते ही मेरा बटुआ काँप गया था। फिर भी हमने भरसक मुस्कान के साथ तुम्हारा स्वागत किया था। रात के भोजन को मध्यम- वर्गीय डिनर जैसा भारी-भरकम बना दिया था। सोचा था कि तुम सुबह चले जाओगे। पर ऐसा नहीं हुआ। तुम यहाँ आराम से सिगरेट के छल्ले उड़ा रहे हो। उधर मैं तुम्हारे सामने कैलेण्डर की तारीखें बदल-बदलकर तुम्हें जाने का संकेत दे रहा हूँ। तीसरे दिन तुमने कपड़े धुलवाने की फ़रमाइश की। कपड़े धुलकर आ गए लेकिन तुम नहीं गए। पत्नी ने सुना तो वह भी आँखें तरेरने लगी। चौथे दिन कपड़े धुलकर आ गए , फिर भी तुम डटे हुए हो। बातचीत के सभी विषय समाप्त हो गए हैं। दोनों अपने अपने में मग्न होकर पढ़ रहे हैं, सौहार्द समाप्त हो चला है। भावनाएँ गालियाँ बनती जा रही हैं। सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो चुकी है, अब भोजन में खिचड़ी बनने लगी है। घर को स्वीट होम कहा गया है , पर तुम्हारे होने से घर का स्वीटनेस खत्म हो गया है। अब तुम चले जाओ वर्ना मुझे ‘ गेट आउट ’ कहना पड़ेगा।यदि तुम अपने आप कल सुबह चले न गए तो मेरी सहनशीलता जवाब दे जाएगी। माना तुम देवता हो किंतु मैं तो आदमी हूँ। मनुष्य और देवता ज़्यादा देर साथ नहीं रह सकते। इसलिए अपना देवत्व सुरक्षित रखना चाहते हो तो अपने आप विदा हो जाओ। तुम कब जाओगे , अतिथि ?

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