"तुम कब जाओगे, अतिथि" व्यंग्यात्मक पाठ के माध्यम से लेखक क्या शिक्षा देना चाहते हे?
Answers
‘तुम कब जाओगे, अतिथि’ व्यंग्यात्मक कहानी के लेखक ‘शरद जोशी’ हैं।
‘तुम कब जाओगे, अतिथि’ व्यंग्यात्मक कहानी के माध्यम से लेखक ‘शरद जोशी’ ये शिक्षा देना चाहते हैं, अतिथि को किसी के घर अधिक समय नही रुकना चाहिये। हमारी संस्कृति में ‘अतिथि देवो भवः’ के संस्कार हमें दिये गये हैं, लेकिन आज महानगरीय जीवन में जहाँ एक मध्यमवर्गीय व्यक्ति को अपनी दैनिक जरूरतों के लिये कड़ा संघर्ष करना पड़ता है, धन व समय का अभाव हर समय रहता है और ऐसे में कोई मेहमान घर पर आकर लंबे समय तक टिक जाए तो वो अतिथि भगवान नही राक्षस के समान लगने लगता है।
लेखक ये कहना चाहते हैं कि हम भी यदि किसी के घर जायें तो ज्यादा समय तक रहकर किसी को तकलीफ न दें। आज की दौड़ती-भागती जिंदगी में किसी के पास इतना समय और धन नही है, कि वो लंबे समय तक आप की आवभगत कर सके।
Answer:
लेखक ने देखा कि दूसरे दिन वापस जाने के बजाय अतिथि तीसरे दिन धोबी को अपने कपडे धुलने के लिए देने की बात कह रहा है। इसका अर्थ यह है कि वह अभी रुकना चाहता है। इस तरह अतिथि ने अपना देवत्व छोड़कर मानव और राक्षस वाले गुण दिखाना शुरू कर दिया है।
लेखक के घर जब अतिथि आता है तो लेखक मुसकराकर उसे गले लगाता है और उसका स्वागत करता है। उसकी पत्नी भी उसे सादर नमस्ते करती है। उसे भोजन के बजाय उच्च माध्यम स्तरीय डिनर करवाते हैं। उससे तरह-तरह के विषयों पर बातें करते हुए उससे सौहार्द प्रकट करते हैं परंतु तीसरे दिन ही उसकी पत्नी खिचड़ी बनाने की बात कहती है। लेखक भी बातों के विषय की समाप्ति देखकर बोरियत महसूस करने लगता है। अंत में उन्हें अतिथि देवता कम मनुष्य और राक्षस-सा नज़र आने लगता है।