) 'तुमुल कोलाहल कलह में' शीर्षक कविता का केन्द्रीय भाव स्पष्ट करें
Answers
‘तुमुल कोलाहल कलह’ कविता हिंदी के प्रसिद्ध कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कविता है। इस कविता का केंद्रीय भाव इस प्रकार है...
इस कविता के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि नित्य चंचल रहने वाली चेतना जब बेचैन होकर नींद के पल को खोजती है और थककर अचेतन होने लगती है, उस समय नींद के लिए बैचेन शरीर को मादक और स्पर्श सुख के मंद मंद झोंके जो आनंद के रस की बरसात करते हैं, उनका वर्णन नही किया जा सकता। जब मन चिर विषाद में विलीन हो जाता है चारों तरफअंधकार छाया होता है, तब उसके लिए ऊषा की सी ज्योति रेखा एक खिला हुआ प्रातःकाल है। इसलिए कवि इस कविता के माध्यम से कवि दुख में भी सुख की किरणों को खोज लेता है।
कवि के अनुसार यह जीवन रेगिस्तान की तपती भूमि के समान है. जहां मन रूपी चातक जल की एक-एक बूंद के लिए तरसता है। विषम परिस्थितियों वाले जीवन में मरुस्थल की वर्षा के समान परम सुख का आनंद खोजना ही कविता का मुख्य भाव है।
कवि के अनुसार जीवन आँसुओं का तालाब है जिसमें निराशा रूपी बादलों की छाया निरंतर पड़ती रहती है और इस निराश आँसू भरे तालाब में आशा रूपी एक कमल भी खिला है, जिस पर भैंरे मंडरा रहे हैं जो कि मकरंद से भरे हुए हैं और आशा का प्रतीक हैं। कवि का इस कविता के माध्यम मुख्य भाव निराशा में भी आशा खोजना है।
☼☼☼☼☼☼☼☼☼☼☼☼☼☼☼☼☼☼☼☼☼☼☼☼☼☼☼☼☼☼☼☼☼☼☼
Answer:
ho t8ejussvjk8r bgsro90000pplgd