History, asked by akshadawankhede08, 9 months ago

तुमचं मत लिहा.
(४) शाळेत साजरा झालेल्या वसुंधरा दिनाचा अहवाल
लिहा.​

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Answered by dimondpranay366
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Explanation:

दिन-पर-दिन पर्यावरण प्रदूषण के पैर पसरते जा रहे हैं। हमारे शहरों की चमक-दमक जिस तेज गति से बढ़ी है, जहरीले कचरे के ढेर भी उससे ज्यादा गति से ऊंचे होते जा रहे हैं। ओजोन गैस की परत में गहरे सूराख होने लगे हैं जिससे सर्वपोषक सूर्य ताप भी कैंसर का कारण बनने लगा है।

हमारी जलवायु तेज से गर्म होती जा रही है। हिमखंडों के पिघलने से समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा और उसके किनारे बसे नगरों को भीषण खतरों का सामना करना पड़ेगा। धरती मां की प्राकृतिक सुषमा घटती जा रही है।

भूमिगत जल का स्तर पाताल के नीचे चला गया है। हमारे खाद्य पदार्थ विषाक्त बनते जा रहे हैं। पेयजल का संकट सुरसा के सिर की तरह बढ़ता जा रहा है। औद्योगिक कचरे, रासायनिक स्रावों और मानव मल-मूत्र ने गंगा जैसी ‍पवित्र ‍नदियों को गंदगी से पाट दिया है।

वनस्पति और जीव-जंतुओं की हजारों जातियां लुप्त हो गई हैं। जैविक ‍वैविध्य घटता जा रहा है। आसमान में पक्षीगण कितने कम दिखाई देते हैं। हवा में उड़ते प्रदूषकों ने अपने मूल स्थान से सैकड़ों किलोमीटर दूर के जन-जीवन को दुष्प्रभावित किया है। ताप, शोर, दुर्गंध आदि का साम्राज्य सभी दूर फैल गया है।

चांद पर विचरण और मंगल ग्रह में जीवन की खोज करने वाले मनुष्य ने क्या सचमुच यह ठान लिया है कि वह इस इस प्यारी धरती को रहने योग्य नहीं रहने देगा? अब तो अंतरिक्ष भी उसके कचरे से कांपने लगा है।

सन् 1972 में स्टॉकहोम में पहला अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन हुआ था। तब से पृथ्‍वी अपनी कीली पर 15 हजार से भी ज्यादा बार घूम चुकी है। 'मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की' वाली कहावत चर‍ितार्थ हो रही है।

उस समय प्रस्तुत रिपोर्ट हमारे रोंगटे खड़े कर देती है। विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की खानापूर्ति करते हुए हम अपनी नई-नई मूर्खताओं से जले पर नमक नहीं, एसिड छिड़कने का कार्य करते जा रहे हैं। अब तो अथाह इलेक्ट्रॉनिक कचरा एक और नया संकट बन गया है।

इस तथाकथित प्रगति की दौड़ में भूटान जैसे अपवाद छोड़ दिए जाएं तो सभी राष्ट्र शामिल हैं। आपाधापी से पूर्ण हमारी इस विकृत जीवनशैली ने मधुमेह, हृदयरोग, कैंसर, मोटापा, उच्च रक्तचाप जैसे भयानक रोगों को महामारी का रूप दे दिया है। हमारे वस्त्र, वाहन और जूते चमकीले हैं, लेकिन चेहरे नि:स्तेज होते जा रहे हैं। हर कोई तनावग्रस्तता का शिकार बनता जा रहा है। धैर्य कम हो रहा है। अवसाद और आत्महत्या की प्रवृत्तियां सिर वृद्धि पर हैं। सभी लोग जल्दी में हैं। विलुपता के बीच विलाप कर रहे हैं।

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