टेन लाइंस ऑन पर्यावरण संरक्षण
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पर्यावरण संरक्षण पर 5 वाक्य लिखिए
हमारे आस पास के प्राकृतिक वातावरण को पर्यावरण कहते
है। पर्यावरण को दूषित होने से बचाने के लिए आम जनता
को अपने कारखाने ऐसी जगह लगाना चाहिए जहां वायु, जल,
ध्वनि, मृदा प्रदूषण न फ़ेल सके। लोगों को नए नए वृक्ष और
पौधे लगाने चाहिए। पर्यावरण को बचाने के लिए हमे पेड़ पौधों
को बचाना चाहिए।
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आज विश्व-पर्यावरण दिवस पर "सर्व-स्वीकार" की प्राचीन भारतीय मान्यता को स्मरण करते हुए आप सब को बधाई...
"ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष शान्तिः, पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधयः शान्तिः । वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः , सर्वं शान्तिः, शान्तिरेव शान्तिः, सा मा शान्तिरेधि ॥"
विश्व पर्यावरण दिवस ✒️
बरसा जाने कौन कहर,
कैसे यह विश्व में जला।
मानवता की आपदा पर भारी।
करोना का प्रकोप बना।
कुदरत की देन समझे या फिर दैविक प्रकोप ।आज समस्त वसुंधरा वासी कोरोना वायरस जैसी महामारी से जूझ रहे है।इसने समस्त मानव जाति पर कहर बरसाना शुरू कर दिया है। कहीं ना कहीं इसका मूल्य कारण मानव जाति हैं क्योंकि अपने निजी स्वार्थ की पूर्ति करने के लिए वह पर्यावरण को क्षति पहुंचा रहे हैं। जिसके कारण करोना जैसी महामारी उत्पन्न होते हैं। आज विश्व पर्यावरण दिवस की शुभ अवसर पर हम लोग पर्यावरण को स्वच्छ निर्मल बनाने की संकल्प लें। ताकि भविष्य में आने वाली पीढ़ी को ऐसी महामारी झेलना पडे़ और मानव का अस्तित्व बचा रह जाए। हे भगवान की बनाई हुई प्रकृतिक है। जहां मेघ के पास पत्र लिखने वाले भी महानुभाव आए हैं। उनके द्वारा स्थापित विश्वास को खंडित ना करें।आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आई हुई विपदा से हम लोग इस पर्यावरण की रक्षा कर करुणा जैसी महामारी को प्रास्त करके जीवन की बड़ती पहिया जो रुक गई है फिर से बड़ने लगेगी। और हमारी बाधित कार्य में समस्या उत्पन्न नहीं होगी।✒️
कहते हैं कि समुद्र मंथन से निकले अमृतकलश को लेकर दानव जब भाग रहे थे तो देवताओं द्वारा उसे वापस पाने की छीनझपट में अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिर गईं थीं।
संजीवनी से लेकर अमृता (गिलोय) तक सभी अत्यंत प्रभावी औषधियाँ उसी स्वर्गिक छलकन का पुण्यफल है मेरे लॉन में खडे, छत्तीसगढ़ी कलाकार द्वारा बनाए इस धातु-सारस तक को शायद इस बेहद प्रभावकारी बेल गिलोय के इन गुणों का पूरा पूरा पता है तभी तो इसने बड़े मन से अपने चारों और इस संजीवनी पौधे की सुरक्षा-साड़ी ओढ़ ली है।
प्रकृति माँ है, फिर कह रहा हूँ, मत भटकिए आदमी की बनाई इस वहशी बाज़ार-व्यवस्था में ! लौटिए अपनी मिट्टी के पास, बैठिए आदर-प्यार और मनुहार लेकर प्रकृति माँ के चरणों में उसी सहजता भरे अपनेपन के साथ जैसे अपनी माँ के पास बैठते हो! तन-मन-मानस-आत्मा की हर व्याधि पराजित होकर आपके अस्तित्व को छोड़कर भागती दिखेगी
मावन जीवन है खतरे में,
इसमें है हम सबकी समझदारी,
पेड़ लगायेंगे और पेड़ बचायेंगे
पर्यावरण सुरक्षा की लो जिम्मेदारी.
पर्यावरण प्रदूषण जो इतना फैलाओगे,
तो प्राकृतिक आपदाओं से कैसे बच पाओगे.
✒️ लक्ष्मीकांत