तीन प्रतिरोधों R1 r2 और r3 के पार्षद क्रम में जोड़े होने पर संयुक्त प्रतिरोध का पता लगाने के लिए एक गतिविधि का वर्णन करें एवं ओम के नियम के अनुसार उपयोग करके इसके लिए संबंध प्राप्त करें पार्षद क्रम व्यवस्था में घरेलू उत्पादों को जोड़ने के लाभ बताइए
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जर्मन भौतिकविद् एवं तकनीकी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉर्ज साइमन ओम ने सन् 1827 में यह नियम प्रतिपादित किया था।
जॉर्ज साइमन ओम
प्रतिरोध R, के साथ V विभवान्तर का स्रोत लगाने पर उसमें विद्युत धारा, I प्रवाहित होती है। ये तीनों राशियाँ ओम के नियम का पालन करती हैं, अर्थात V = IR.
ओमीय तथा अन-ओमीय युक्ति के I = V आरेख : इनमें से लाल रंग की सरल रेखा ओमीय युक्ति का और काले रंग की वक्र गैर-ओमीय युक्ति के वी-आई वैशिष्ट्य को निरूपित कर रही है
ओम के नियम (Ohm's Law) के अनुसार यदि ताप आदि भौतिक अवस्थायें नियत रखीं जाए तो किसी प्रतिरोधक (या, अन्य ओमीय युक्ति) के सिरों के बीच उत्पन्न विभवान्तर उससे प्रवाहित धारा के समानुपाती होता है।
अर्थात्
V ∝ I
या,
{\displaystyle V=R\,I}{\displaystyle V=R\,I}
या,
{\displaystyle R={\frac {V}{I}}=\mathrm {const.} }{\displaystyle R={\frac {V}{I}}=\mathrm {const.} }
R, को युक्ति का प्रतिरोध कहा जाता है। इसका एक मात्रक ओम (ohm) है।
वास्तव में 'ओम का नियम' कोई नियम नहीं है बल्कि यह ऐसी वस्तुओं के 'प्रतिरोध' को परिभाषित करता है जिनको अब 'ओमीय प्रतिरोध' कहते हैं। दूसरे शब्दों में यह उन वस्तुओं के उस गुण को रेखांकित करता है जिनका V-I वैशिष्ट्य एक सरल रेखा होती है। ज्ञातव्य है कि वैद्युत अभियांत्रिकी एवं इलेक्ट्रानिक्स में प्रयुक्त बहुत सी युक्तियाँ ओम के नियम का पालन नहीं करती हैं। ऐसी युक्तियों को अनओमीय युक्तियाँ कहते हैं। उदाहरण के लिये, डायोड एक अनओमीय युक्ति है।
तीन प्रतिरोध 4 ओम, 6 ओम तथा 12 ओम के हैं। इन्हें 22 वोल्ट की बैटरी से जोड़ने पर परिपथ में धारा का मान ज्ञात काजिए, जबकि (i) प्रतिरोधां को श्रेणीक्रम में जोड़ा गया है, (ii) प्रतिरोधों को समान्तर-क्रम में जोड़ा गया है। बैटरी का आन्तरिक प्रतिरोध नगण्य है।