तानाशाही क्या है और उसकी जीवन शैली कैसी होती है200 words
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वर्तमान समय में तानाशाही या अधिनायकवाद (डिक्टेटरशिप) उस शासन-प्रणाली को कहते हैं जिसमें कोई व्यक्ति (प्रायः सेनाधिकारी) विद्यमान नियमों की अनदेखी करते हुए डंडे के बल से शासन करता है।
एकाधिनायकत्व, अधिनायकवाद या डिक्टेटरशिप उस एक व्यक्ति की सरकार है जिसने शासन उत्तराधिकार के फलस्वरूप नहीं वरन् बलपूर्वक प्राप्त किया हो तथा जिसे पूर्ण संप्रभुत्ता प्राप्त हो-अर्थात् संपूर्ण राजनीतिक शक्ति न केवल उसी के संकल्प से उद्भूत हो वरन् कार्यक्षेत्र और समय की दृष्टि से असीमित तथा किसी अन्य सत्ता के प्रति उत्तरदायी नहीं-और वह उसका प्रयोग बहुधा अनियंत्रित ढंग से विधान के बदले आज्ञप्तियों द्वारा करता हो।
अनुक्रम
1 इतिहास
2 परिचय
3 प्रकार
4 अधिनायकतंत्र के गुण
5 अधिनायकतंत्र के दोष
6 इन्हें भी देखें
7 सन्दर्भ ग्रन्थ
8 बाहरी कड़ियाँ
इतिहास
दिक्तेतर (डिक्टेटर, एकाधिनायक) शब्द को सर्वप्रथम प्रयुक्त करनेवाले रोमन लोग थे जो कुछ विशिष्ट प्रशासकों को अनुमानत: इसलिए दिक्तेतर कहते थे कि उनके कोई सलाहकार नहीं होते थे। रोमन गणतंत्र के संविधान में एकाधिनायकत्व या अधिनायकवाद से तात्पर्य संकटकालीन स्थिति में किसी एक व्यक्ति के अस्थायी रूप से असीमित अधिकार प्राप्त कर लेने से था। संकट टल जाने पर एकाधिनायक के असीमित अधिकार भी समाप्त हो जाते थे और उन्हें छोड़ते समय उसे उनके प्रयोगों का पूरा ब्योरा देना पड़ता था। अत: विधान तथा शासितों के प्रति उत्तरदायित्व अधिनायक की प्रमुख विशेषता थी।
आधुनिक युग में प्रथम विश्वयुद्ध के बाद किसी एक व्यक्ति या वर्ग के स्वार्थ के लिए विधान का उल्लंघन एकाधिनायकत्व का प्रमुख लक्षण हो गया। युद्ध ने जनसाधारण के मस्तिष्क को थकाने के अतिरिक्त उसपर संयम के स्थान पर सैन्य अनुशासन आरोपित कर सभी सामाजिक क्षेत्रों में आज्ञापालन की प्रवृत्ति उत्पन्न की। सैन्य उद्देश्यों के लिए आवश्यक सत्ता के केंद्रीकरण ने लोगों को इस बात के लिए अभ्यस्त बना दिया कि वे सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए ऐसी निरंकुश सत्ता के निर्णय मान लें जो किसी के प्रति उत्तरदायी न हो। ऐसी परिस्थिति में जनतांत्रिक पद्धति विघटित होती जान पड़ी। फलत: युद्ध से सर्वाधिक प्रभावित देशों में सामान्यत: लोग ऐसे 'लौहपुरुष' के स्वागत के लिए तत्पर थे जो अपने शौर्य, आत्मविश्वास और कटिबद्धता के बल पर उनका मत लिए बिना राष्ट्र के नाम पर अपनी इच्छा तथा आदेश से समस्याओं का समाधान कर दे। अत: जनता के लिए सामान्यत: एकाधिनायक वह कर्मठ व्यक्ति हुआ जो स्वयं राष्ट्रीय प्रतीक बन किसी रहस्यात्मक आकर्षण द्वारा अपने प्रति आदर का भाव जगा सके तथा इस आधार पर लोगों को महान होने का अनुभव करा सके कि वे उससे संबंधित हैं।
परिचय
एकाधिनायकत्व की प्रथम विशेषता उसके उद्गम में हैं। किसी देश तथा युग में इसकी स्थापना कभी उन साधनों से नहीं होती जो उस देश और युग में वैध माने जाते हैं। उसके लिए यह आवश्यक है कि उसकी नींव विधान के उल्लंघन पर हो, यद्यपि उसका अस्तित्व किसी विधान के न मानने पर आश्रित नहीं है। प्रत्येक एकाधिनायकत्व का प्रारंभ विप्लव से होता है और फिर संभवत: किन्हीं कारणों से वह अपना क्रांतिकारी स्वरूप बनाए रख सकता है। परंतु उसका उद्देश्य पुराने विधान के स्थान पर नए विधान की स्थापना भी हो सकता है क्योंकि एकाधिनायकत्व पुरातन, जीर्ण व्यवस्था की असफलता तथा नवीन व्यवस्था के लिए उसके ध्वंस की पूर्वकल्पना करता है। उसकी दूसरी प्रमुख विशेषता यह है कि जनतंत्र (जो सिद्धांतत: प्रत्येक नागरिक को सरकार में भाग लेने का अधिकार देता है) के विपरीत इसका संचालन एक व्यक्ति या वर्ग के हाथ में दूसरों पर शासन करने के लिए होता है। तीसरे, सत्ताधारी खुले ढंग से यह घोषित करता है कि राष्ट्र में उसका एक विशिष्ट स्थान है।
अतएव व्यापक अर्थ में एकाधिनायकीय सरकार वह व्यवस्था है जिसमें राज्य के एक या कई सदस्य खुले तथा व्यवस्थित ढंग से पूरे राष्ट्र पर शक्ति का -जिसे उन्होंने पूर्व के सभी वैध आधिकारों और स्थापनाओं के उल्लंघन के फलस्वरूप होनेवाली हिंसा से अर्जित किया है-प्रयोग सरकार में भाग न लेनेवाली जनता की सम्मति से स्वतंत्र रहकर करते हैं।
प्रकार
सरकार के स्वरूप के आधार पर एकाधिनायकत्व दो वर्गो में विभाजित किया जा सकता है :
(१) एक व्यक्ति के अधिनायक होने पर वैयक्तिक अधिनायकत्व, तथा
(२) एक वर्ग के अधिनायक होने पर सामूहिक एकाधिनायकत्व की स्थापना होती है।
वैयक्तिक एकाधिनायकत्व (विशेषत: फ़ासिस्ती) में एकाधिनायक अपने निजी कर्मचारियों की सहायता से 'फ़यूरर' के सिद्धांत के आधार पर स्वतंत्र ढंग से शासन करता है। फ़्यूरर की विशेषता यह है कि वह अपने सहायकों के प्रति उत्तरदायी नहीं होता, वरन् अपने से ऊपर-राष्ट्र, इतिहास या ईश्वर-के प्रति अपना दायित्व घोषित करता है। फ़यूरर अपने सहायकों को नियुक्त करता है जो अपने अधीन कर्मचारियों को और ये कर्मचारी फिर अपने अधीनों को नियुक्त करते हैं। इस प्रकार पूरी व्यवस्था में निर्वाचनपद्धति का कोई स्थान नहीं होता और संपूर्ण ढाँचा सर्वोपरि चरम बिंदु पर अवलंबित होता है। सामूहिक एकाधिनायकत्व में फ़यूरर के स्थान पर उत्तरदायी नेता होते हैं; नेताओं की एक श्रेणी उच्चतर श्रेणी के नेताओं को चुनती है, प्रत्येक नेता अपने निर्वाचकों के प्रति उत्तरदायी होता है। इस प्रकार संपूर्ण ढाँचा निम्नतम आधार पर अवलंबित होता है।
सामाजिक शक्तियों के आधार पर भी एकाधिनायकत्व के दो वर्ग हो सकते हैं।
(१) जब वैयक्तिक एकाधिनायकत्व में सहायक वर्ग किसी दल, निजी या राजकीय सेना, चर्च या प्रशासकीय विभाग का हो,
(२) जब सामूहिक एकाधिनायकत्व में यही वर्ग स्वयं अधिनायक हो।
अतएव यह विभाजन शासक तथा सहायक वर्ग के आधार पर होता है। वर्ग एकाधिनायकत्व के आधुनिक तीन प्रमुख प्रकार हैं : सैन्य, दल और प्रशासकीय।
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वर्तमान समय में तानाशाही या अधिनायकवाद (डिक्टेटरशिप) उस शासन-प्रणाली को कहते हैं जिसमें कोई व्यक्ति (प्रायः सेनाधिकारी) विद्यमान नियमों की अनदेखी करते हुए डंडे के बल से शासन करता है।
एकाधिनायकत्व, अधिनायकवाद या डिक्टेटरशिप उस एक व्यक्ति की सरकार है जिसने शासन उत्तराधिकार के फलस्वरूप नहीं वरन् बलपूर्वक प्राप्त किया हो तथा जिसे पूर्ण संप्रभुत्ता प्राप्त हो-अर्थात् संपूर्ण राजनीतिक शक्ति न केवल उसी के संकल्प से उद्भूत हो वरन् कार्यक्षेत्र और समय की दृष्टि से असीमित तथा किसी अन्य सत्ता के प्रति उत्तरदायी नहीं-और वह उसका प्रयोग बहुधा अनियंत्रित ढंग से विधान के बदले आज्ञप्तियों द्वारा करता हो।