तृण वाबद का अर्थ कया होता है ?
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वह उद्भिद् जिसकी पेडी़ या कांड में छिलके और हीर का भेद नहीं होता और जिसकी पत्तियों के भीतर केवल समानांतर (प्रायः लंबाई के बल) नसे होती हैं, जाल की तरह वुनी हुई नहीं । जैसे, दूब, कुश, सरात, मूँज, बाँस, ताड़ इत्यादि । घास ।
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