टोपी आठ आने में मिल जाती है और जूते उस जमाने में भी पाँच रुपये से कम
में क्या मिलते होंगे। जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत
और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं। तुम भी जूते और
टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे। यह विडंबना मुझे इतनी तीव्रता से पहले
कभी नहीं चुभी, जितनी आज चुभ रही है, जब मैं तुम्हारा फटा जूता देख रहा हूँ।
तुम महान कथाकार, उपन्यास-सम्राट, युग प्रवर्तक, जाने क्या-क्या कहलाते थे, मगर
फोटो में भी तुम्हारा जूता फटा हुआ है!)
भाव अर्थ बता दो मुझे इस गद्यांश का। ये गद्यंश कक्षा 9 से पाठ प्रेमचंद के फटे जुते से ली गई है।
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Answers
दिए गए गद्यांश का भावार्थ संदर्भ सहित नीचे दिया गया है।
संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हरिशंकर परसाई जी द्वारा लिखित व्यंग्य " प्रेमचंद के फटे जूते " से लिया गया है। इस गद्यांश में लेखक कहते है कि उनके पास प्रेमचंद की एक तस्वीर है जिसमें उन्होंने फटे हुए जूते पहने है । लेखक कहते है कि वे कभी उस प्रकार फटे हुए जूतों में फोटो न कह खिंचवाते।
व्याख्या - लेखक के पास जो प्रेमचंद की तस्वीर थी उसमें प्रेमचन्दजी ने मोटे कपड़े की टोपी पहनी हुई थी। गाल पूछे हुए थे। उन्होंने केनवास के जूते पहने हुए थे। दाएं पैर का जूता ठीक था परन्तु बाएं पैर के जूते से पैर की उंगली बाहर निकली हुई थी।
लेखक कहते है एक उस जमाने में टोपी आठ आने वाले तथा जूते 5 रुपए में मिल जाते होंगे। प्रेमचंद जी को किसी से जूते उधार लेकर फोटो खिंचवानी चाहिए थी। लोग तो फोटो के लिए कोट तक मांग लेते है, प्रेमचंद जी से एक जूता नहीं मांगा गया।
वे कहते है कि प्रेमचंद जी एक महान उपन्यासकार है, कथाकार है ,फटे जूते में फोटो कैसे खिंचवाई है। फिर वे कहते है कि प्रेमचंद जी जैसे थे वैसे ही वे फोटो में है, कोई दिखावा या बनावटीपन नहीं कर सकते।
Explanation:
निमन मैं से कोनसा शब्द शुद नहीं है 1 बा्हरण 2उजवल 3गाव 4 उत्कृष्ट