Hindi, asked by meetmayani46, 7 months ago

टिप्पणी लिखें 2.चंद्रगुप्त मौर्य वं उनके गुरु चाणक्य​

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Answered by rd758750
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चाणक्य (अनुमानतः ईसापूर्व 376 - ईसापूर्व 283) चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। ... आचार्य चाणक्य का जन्म भट्ट ब्राह्मण परिवार में हुआ था चाणक्य तक्षशिला विश्वविद्यालय के आचार्य थे , उन्होंने मुख्यत: भील और किरात राजकुमारों को प्रशिक्षण दिया । उन्होंने नंदवंश का नाश करके चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया।

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Answered by HEARTLESSBANDI
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Explanation:

सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु चाणक्य थे। चन्द्रगुप्त ने अपने पुत्र बिंदुसार को गद्दी सौंप दी थीं। बिंदुसार के समय में चाणक्य उनके प्रधानमंत्री थे। इतिहास में बिंदुसार को 'महान पिता का पुत्र और महान पुत्र का पिता' कहा जाता है, क्योंकि वे चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र और सम्राट अशोक महान के पिता थे।

चन्द्रगुप्त मौर्य प्राचीन भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण सम्राट है ।चन्द्रगुप्त के सिहासन सम्भालने से पहले, सिकंदर ने उत्तर पश्चिमी भारतीय उपमहाद्वीप पर आक्रमण किया था, और 324 ईसा पूर्व में उसकी सेना में विद्रोह की वजह से आगे का अभियान छोड़ दिया, जिससे भारत-ग्रीक और स्थानीय शासकों द्वारा शासित भारतीय उपमहाद्वीप वाले क्षेत्रों की विरासत सीधे तौर पर चन्द्रगुप्त ने सम्भाली। चन्द्रगुप्त ने अपने गुरु चाणक्य (जिसे कौटिल्य और विष्णु गुप्त के नाम से भी जाना जाता है,.जो चन्द्र गुप्त के प्रधानमन्त्री भी थे) के साथ, एक नया साम्राज्य बनाया, राज्यचक्र के सिद्धान्तों को लागू किया, एक बड़ी सेना का निर्माण किया और अपने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार करना जारी रखा।

सिकंदर के आक्रमण के समय लगभग समस्त उत्तर भारत धनानन्द द्वारा शासित था। चाणक्य तथा चन्द्रगुप्त ने नन्द वंश को समाप्त करने का निश्चय किया। अपनी उद्देश्यसिद्धि के निमित्त चाणक्य और चन्द्रगुप्त ने एक विशाल विजयवाहिनी का प्रबन्ध किया। ब्राह्मण ग्रन्थों में 'नन्दोन्मूलन' का श्रेय चाणक्य को दिया गया है। अर्थशास्त्र में कहा है कि सैनिकों की भरती चोरों, म्लेच्छों, आटविकों तथा शस्त्रोपजीवी श्रेणियों से करनी चाहिए। मुद्राराक्षस से ज्ञात होता है कि चन्द्रगुप्त ने हिमालय प्रदेश के राजा पर्वतक से सन्धि की। चन्द्रगुप्त की सेना में शक, यवन, किरात, कम्बोज, पारसीक तथा वह्लीक भी रहे होंगे। प्लूटार्क के अनुसार सान्द्रोकोत्तस ने सम्पूर्ण भारत को 6,00,000 सैनिकों की विशाल वाहिनी द्वारा जीतकर अपने अधीन कर लिया। जस्टिन के मत से भारत चन्द्रगुप्त के अधिकार में था।

चन्द्रगुप्त ने सर्वप्रथम अपनी स्थिति पंजाब में सदृढ़ की। उसका यवनों के विरुद्ध स्वातन्त्यय युद्ध सम्भवतः सिकंदर की मृत्यु के कुछ ही समय बाद आरम्भ हो गया था। जस्टिन के अनुसार सिकन्दर की मृत्यु के उपरान्त भारत ने सान्द्रोकोत्तस के नेतृत्व में दासता के बन्धन को तोड़ फेंका तथा यवन राज्यपालों को मार डाला। चन्द्रगुप्त ने यवनों के विरुद्ध अभियान लगभग 323 ई.पू. में आरम्भ किया होगा, किन्तु उन्हें इस अभियान में पूर्ण सफलता 317 ई.पू. या उसके बाद मिली होगी, क्योंकि इसी वर्ष पश्चिम पंजाब के शासक क्षत्रप यूदेमस (Eudemus) ने अपनी सेनाओं सहित, भारत छोड़ा। चन्द्रगुप्त के यवनयुद्ध के बारे में विस्तारपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता। इस सफलता से उन्हें पंजाब और सिन्ध के प्रान्त मिल गए।

चन्द्रगुप्त मौर्य का महत्वपूर्ण युद्ध धनानन्द के साथ उत्तराधिकार के लिए हुआ। जस्टिन एवं प्लूटार्क के वृत्तों में स्पष्ट है कि सिकंदर के भारत अभियान के समय चन्द्रगुप्त ने उसे नन्दों के विरुद्ध युद्ध के लिये भड़काया था, किन्तु किशोर चन्द्रगुप्त के व्यवहार ने यवनविजेता को क्रुद्ध कर दिया। भारतीय साहित्यिक परम्पराओं से लगता है कि चन्द्रगुप्त और चाणक्य के प्रति भी नन्दराजा अत्यन्त असहिष्णु रह चुके थे। महावंश टीका के एक उल्लेख से लगता है कि चन्द्रगुप्त ने आरम्भ में नन्दसाम्राज्य के मध्य भाग पर आक्रमण किया, किन्तु उन्हें शीघ्र ही अपनी त्रुटि का पता चल गया और नए आक्रमण सीमान्त प्रदेशों से आरम्भ हुए। अन्ततः उन्होंने पाटलिपुत्र घेर लिया और धनानन्द को मार डाला।

इसके बाद, ऐसा प्रतीत होता है कि चन्द्रगुप्त ने अपने साम्राज्य का विस्तार दक्षिण में भी किया। मामुलनार नामक प्राचीन तमिल लेखक ने तिनेवेल्लि जिले की पोदियिल पहाड़ियों तक हुए मौर्य आक्रमणों का उल्लेख किया है। इसकी पुष्टि अन्य प्राचीन तमिल लेखकों एवं ग्रन्थों से होती है। आक्रामक सेना में युद्धप्रिय कोशर लोग सम्मिलित थे। आक्रामक कोंकण से एलिलमलै पहाड़ियों से होते हुए कोंगु (कोयम्बटूर) जिले में आए और यहाँ से पोदियिल पहाड़ियों तक पहुँचे। दुर्भाग्यवश उपर्युक्त उल्लेखों में इस मौर्यवाहिनी के नायक का नाम प्राप्त नहीं होता। किन्तु, 'वम्ब मोरियर' से प्रथम मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त का ही अनुमान अधिक संगत लगता है।

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