History, asked by kanisharish123, 17 days ago

टोपी शुक्ला कहानी में कबाब किसने खाया थे ?​

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Answered by sakshmajgmailcom
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Explanation:

पाठ का नाम ‘टोपी शुक्ला’ तथा लेखक का नाम-‘डॉ .राही मासूम रज़ा’है |

पाठ में टोपी ने कसम खाई कि वह कभी ऐसे लड़के से दोस्ती नहीं करेगा जिसके पिता का तबादला हो जाता हो |

टोपी ने मुन्नी बाबू के कबाब खाने की बात सबसे छिपाकर रखी थी |

इफ़्फ़न और टोपी शुक्ला दोनों गहरे दोस्त थे। एक दूसरे के बिना अधूरे थे परन्तु दोनों की आत्मा में प्यार की प्यास थी। इफ़्फ़न अपने मन की बात दादी को या टोपी को कह कर हल्का कर लेता था और टोपी के लिए इफ़्फ़न और उसकी दादी के अलावा कोई नहीं था। अत: इफ़्फ़न वास्तव में टोपी की कहानी का अटूट हिस्सा है।

‘अम्मी’ शब्द को सुनते ही सबकी नज़रें टोपी पर पड़ गईं क्योंकि यह मज़हबी शब्द था और टोपी हिंदू था । इस शब्द को सुनकर जैसे परम्पराओं की दीवारें डोलने लगीं । घर में सभी हैरान थे। माँ ने डाँटा, दादी गरजी और टोपी की जमकर पिटाई हुई।

इफ़्फ़न की दादी उसे बहुत प्यार करती थी, हर तरह से उसकी सहायता करती थी। उसके अब्बू,अम्मी उसे डाँटते थे, उसकी बाजी और नुज़हत भी उसको परेशान करती थी। दादी उसको रात में अनार परी, बहराम डाकू, अमीर हमला, गुलबकावली, हातिमताई जैसी अनेक कहानियाँ सुनाती थी । इसी कारण वह अपनी दादी से प्यार करता था।

कस्टोडियन पर जाना अर्थात् सरकारी कब्जा होना। दादी के पीहर वाले जब पाकिस्तान में रहने लगे तो भारत में उनके घर की देखभाल करने वाला कोई नहीं रहा। इस पर मालिकाना हक भी न रहा। इसलिए वह घर सरकारी कब्जे में चला गया।

इफ़्फ़न की दादी टोपी की माँ की तरह पूर्वी बोलती थीं | इफ़्फ़न की दादी टोपी से बड़े प्यार से बातें करती,उसका तथा माँ का हाल-चाल पूछा करतीं थीं | वे उसे बड़े प्यार से समझाती थीं | टोपी को इफ़्फ़न की दादी अपनी दादी से ज़्यादा पसंद थीं | एक वही थीं जो टोपी को समझती थीं |

इफ़्फ़न की दादी की मृत्यु के बाद टोपी को उसके घर में सन्नाटा छाया सा प्रतीत हुआ | रोज़ जितने लोग हुआ करते थे उससे ज्यादा ही लोग थे परन्तु एक दादी के न होने से टोपी के लिए वह घर खाली हो चुका था | इफ़्फ़न के अम्मी,अब्बू ,बाजी और छोटी बहन उससे प्यार करते,परंतु टोपी को चाहने वाला और कोई नहीं था | बहत्तर बरस की दादी और सात बरस के टोपी ने एक दूसरे की कमी को पूरा कर एक अद्भुत संबंध बनाया था,परंतु दादी के चले जाने से चारों ओर सन्नाटा छा गया था | वास्तव में यह खालीपन टोपी के अंदर का खालीपन था | दादी के चले जाने के बाद टोपी स्वयं को अकेला महसूस करने लगा था और यह अकेलापन उसके भीतर तक समा गया था|

बलभद्र (टोपी) शुक्ला हिन्दू ब्राह्मण परिवार का था और इफ़्फ़न की दादी पाँचों वक्त नमाज़ पढ़ने वाली,बहत्तर साल की एक मुस्लिम महिला थीं | वह मौलवी साहब की बेगम थीं | दो अलग संस्कारों, धर्मों के इन दोनों पत्रों में एक अद्भुत लगाव देखने को मिलता है | ऐसे रिश्ते को समझना उन लोगों के लिए कठिन है, जो इंसानियत की अपेक्षा धर्मं को अधिक महत्त्व देते हैं | दादी और पोते समान टोपी के इस रिश्ते के बीच न तो धर्मं की दीवार,न संस्कारों की दूरी और न ही उम्र की खाई आड़े आती है |

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