टी. पद्मनाभन
कचे जब जार से निकलकर अप्पू के मन की कल्पना में समा जाते हैं, तब
क्या होता है?
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टी. पद्मनाभन
कचे जब जार से निकलकर अप्पू के मन की कल्पना में समा जाते हैं, तब
क्या होता है?
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कंचे जब जार से निकलकर अप्पू के मन की कल्पना में समा जाते हैं तो वह उनकी ओर पूरी तरह से सम्मोहित हो जाता है। उसे लगता है की जैसे कंचों का जार बड़ा होकर आसमान-सा बड़ा हो गया और वह उसके भीतर चला गया।
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