तारीख के मोहम्मद दिया का क्या उद्देश्य था(वहाबी आंदोलन में)..
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वहाबीवाद या वहाबी आंदोलन[1] एक अतिवादी इस्लामी आंदोलन है जिसका श्रेय इमाम मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब (1703–1792) को दिया जाता है।[2][3][4][5]दावे के अनुसार, वह बिदअतों को मिटाने तथा इस्लाम को उसके असल हालत में, जैसा कि इस्लाम के पैगंबर के समय में था, कुछ लोग उन्हें चरमपंथी मानते हैं।[2][6]वहाबियों को खुद को वहाबी कहलाना पसंद नहीं है, खुद को अहले-हदीस, सलफी या मुवह्हिद कहते हैैं।[7]दावे के अनुसार, यह आंदोलन एकेश्वरवाद के इर्द-गिर्द घूमता है।[8] अक़़िदों के सन्दर्भ में , यह आंदोलन मध्यकालीन विद्वान इब्न तैमियाह और इमाम अहमद इब्न हन्बल की शिक्षाओं पर ज्यादा जोर देता है। हन्बली उलेमा मुहम्मद इब्न अब्दुल वहाब की मान्यताओं का समर्थन करते है।हालांकि कुछ हनबली उलेमाओं ने ओटोमन प्रभाव के कारण इब्न अब्दुल वहाब के विचारों को त्याग दिया।[9] वास्तव में, मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब न्यायशास्त्र और अक़िदों में इब्न तैमियाह से बहुत प्रभावित थे, और इब्न तैमियाह कुछ मामलों में हन्बली सोच से भिन्न थे, जिसमें उन्होंने अपनी राय और अंतर्दृष्टि के अनुसार फतवे जारी किए थे,और वह कुछ मामलों में किसी के भी अनुकरण करने वाले नहीं थे।[10] इब्न अब्दुल वहाब और आले सऊद के बीच संबंध इस अतिवादी आंदोलन के लिए लंबे समय तक चलने और उपयोगी साबित हुए। आले सऊद ने आंदोलन के साथ राजनीतिक और धार्मिक संबंधों को बनाए रखा, जिसने अगले 150 वर्षों तक सऊदी अरब में आंदोलन का पोषण किया, जो आज भी जारी है।[2][11]