त्रिलोचन की कविता दीप जलाओ की आस्वधन टिपण्णी
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इस जीवन में रह न जाए मल द्वेष, दंभ, अन्याय, घृणा, छल चरण चरण चल गृह कर उज्जवल गृह .
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