त्रिपक्षीय संघर्ष में लगे 3 पक्ष कौन-कौन से थे
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❥hii
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❥"त्रिपक्षीय संघर्ष' में लगे तीनों पक्ष कौन-कौन से थे?
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❥ "त्रिपक्षीय संघर्ष' में लगे तीनों पक्ष कौन-कौन से थे?
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❥त्रिपाठी संघर्ष में लगे तीनों पक्ष निम्न थे
गुर्जर प्रतिहार
राष्ट्रकूट
पाल
गुर्जर प्रतिहार राष्ट्रकूट पात्र पति संघर्ष में लगे तीनों पति थे यह गंगा नदी घाटी में कन्नौज के नियंत्रण को लेकर संघर्ष ही थे .
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❥more question of this question
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❥चोल साम्राज्य में सभा की किसी समिति का सदस्य बनने के लिए आवश्यक शर्तें क्या थी ?
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❥सभा की सदस्यता के लिए ऐसी भूमिका स्वामी होना चाहिए.
जहां से भू राजस्व वसूला जा सके
अपना घर होना चाहिए
उनकी उम्र 35 से 70 साल तक होनी चाहिए
प्रशासनिक मामला की अच्छी तरह जानकारी और ईमानदार होना चाहिए
पिछले 3 सालों में वह किसी समिति का सदस्य रहा है तो वह समिति का सदस्य नहीं बन सकता
जिसने अपने संबंधियों के खाते जमा नहीं कराए वह चुनाव नहीं लड़ सकता .
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❥क्या है मानव के नियंत्रण में आने वाले प्रमुख नगर कौन-कौन से थे ?
इंद्रप्रस्थ
कन्नौज .
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❥आशा है यह उत्तर आपकी मदद करेगा
Answer:
त्रिपक्षीय संघर्ष में गुर्जर-प्रतिहार, राष्ट्रकूट, पाल 3 पक्ष थे |
Explanation:
हर्षवर्धन के शासन काल से ही 'कन्नौज' पर नियंत्रण उत्तरी भारत पर प्रभुत्व का प्रतीक माना जाता था। अरबों के आक्रमण के उपरान्त भारतीय प्रायद्वीप के अन्तर्गत तीन महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ थीं- गुजरात एवं राजपूताना के गुर्जर-प्रतिहार, दक्कन के राष्ट्रकूट एवं बंगाल के पाल। कन्नौज पर अधिपत्य को लेकर लगभग 200 वर्षों तक इन तीन महाशक्तियों के बीच होने वाले संघर्ष को ही त्रिपक्षीय संघर्ष कहा गया है। इस संघर्ष में अन्तिम सफलता गुर्जर-प्रतिहारों को मिली।
छठी शताब्दी ई. में गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद ही राजनीतिक शक्ति के केन्द्र के रूप में 'पाटिलिपुत्र' का महत्व समाप्त हो गया। फलस्वरूप इसका स्थान उत्तर भारत में स्थित कन्नौज ने ले लिया। प्रश्न उठता है कि, कन्नौज संघर्ष का कारण क्यों बना। हर्षवर्धन के बाद उत्तर भारत का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नगर होने, गंगा नदी के किनारे स्थित होने के कारण व्यापारिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने, गंगा तथा यमुना के बीच में स्थित होने के कारण उत्तर भारत का सर्वाधिक उपजाऊ क्षेत्र होने एवं तीनों महाशक्तियों की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति उपयुक्त क्षेत्र होने के कारण ही कन्नौज संघर्ष का क्षेत्र बना।
'त्रिपक्षीय संघर्ष' में शामिल होकर राष्ट्रकूट शक्ति ने, दक्षिण से उत्तर पर आक्रमण करने वाली एवं उत्तर भारत की राजनीति में दख़ल देने वाली दक्षिण की प्रथम शक्ति बनने का गौरव प्राप्त किया।
इस संघर्ष में कभी पालों की विजय होती रही तो कभी राष्ट्रकूट भारी रहे , तथा कई बार राष्ट्रकूट वंशीय शासक इस पर अपना अधिकार जमाते दिखे। परंतु इस त्रिपक्षीय संघर्ष का परिणाम अंततः प्रतिहारों के पक्ष में रहा जबकि इन तीनों में सबसे शक्तिशाली राष्ट्रकूट रहे।
#SPJ2