त्रिस्तरीय पंचायत चुनव मे निबंध
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पंचायती राज पर निबंध! Here is an essay on ‘Panchayati Raj’ in Hindi language.
”पाँच पच मिलि कीजै काज । हारे जीते न होवे लाज ।।”
प्राचीनकाल में भारत में पंचायत की ऐसी व्यवस्था थी, जिसमें पंचों को समाज में न्याय करने बाले लोगों के रूप में ईश्वर के सदृश सम्मान प्राप्त था । पूर्वकाल में स्थानीय प्रशासन, शान्ति व्यवस्था एवं ग्राम विकास में ग्राम पंचायतों की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी ।
डॉ. सरयू प्रसाद चौबे के शब्दों में- ”आर्यों के आगमन से पूर्व ही यहाँ ग्राम राज्य एवं ग्राम पंचायत का पूर्ण बिकास हो चुका था । प्रत्येक गांव में एक ग्राम पंचायत होती थी, जिसमें एक मुखिया और अन्य प्रतिनिधि सदस्य होते थे ।”
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भी इनकी प्रासंगिकता बनी रही, इसलिए भारत में पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक रूप से लागू किया गया है तथा पंचायती राज व्यवस्था के सुचारु रूप से कार्यान्वयन एवं ग्रामीण विकास की आवश्यकता को देखते हुए भारत सरकार के अन्तर्गत पंचायती राज मन्त्रालय के रूप में एक अलग मन्त्रालय की स्थापना भी की गई है ।
भारत में ग्राम पंचायतों का अस्तित्व वैदिककाल से ही रहा है । उल्लेखनीय है कि उस समय ग्राम पंचायत पाँच प्रशासनिक इकाइयों में से एक थी । ग्राम के मुखिया को ग्रामिणी कहा जाता था । वैदिककाल के बाद भारत में प्रशासनिक इकाई के रूप में ग्राम पंचायत का अस्तित्व मुगलकाल तक रहा, किन्तु ब्रिटीशकल में पंचायत व्यवस्था छीन्न-भिन्न हो गई ।
अंग्रेज चाहते थे कि प्रशासन से सम्बन्धित कार्य यथासम्भव उनके कर्मचारियों के हाथों में रहे । इसके परिणामस्वरूप, स्थानीय स्वशासन व्यवस्था यानि ग्राम पंचायत का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त होने लगा, लेकिन प्रशासनिक स्तर को छोड़कर सामाजिक स्तर पर प्रत्येक जाति अथवा वर्ग में अपनी अलग-अलग पंचायतें बनी रहीं, जो सामाजिक जीवन को नियन्त्रित करती थी ।