त्रिशूलाग्निनागैः पृथिव्यस्त्रघोरैः
अणूनां महाशक्तिभिः पूरितेयम्।
सदा राष्ट्ररक्षारतानां धरेयम् ।
क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः॥2॥
शब्दार्थ : इयम्-यह। त्रिशूलाग्निनागैः–त्रिशूल, अग्नि, नाग (से)। पृथिव्यस्त्रघोरैः-पृथ्वी, आकाश जैसे भयानक प्रक्षेपास्त्रों से। अणूनाम्-अणुओं की। महाशक्तिभिः-महाशक्तियों के द्वारा। पूरिता–भरी हुई। राष्ट्ररक्षारतानाम्-देश की रक्षा में लगे हुओं की। धरा-धरती।
सरलार्थ : यह ( भारत की भूमि) त्रिशुल, अग्नि, नाग, पृथ्वी और आकाश जैसी भयानक मिसाइलों (प्रक्षेपास्त्रों) से युक्त, महान परमाणु शक्ति से भरी हुई है। यह धरती सदैव राष्ट्र की रक्षा में लगे रहने वालों (वीरों) की है। अतः यह भारत की स्वर्ण जैसी भूमि धरती पर शोभा पा रही है।
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