तीर्थ कितने प्रकार के होते हैं
Answers
तीर्थ के प्रकार
तीर्थ:
जहाँ पर तीर्थंकरो एवं सामान्य केवलियों को मोक्ष (निर्वाण) की प्राप्ति हुई, जहाँ तीर्थंकरो के कल्याणक (मोक्ष के अलावा) हुए तथा जहाँ कोई विशेष अतिशय घटित हुआ, ऐसे स्थानों (क्षेत्रों) को तीर्थक्षेत्र कहते हैं।
तीर्थ के भाग:
तीर्थ को चार भागों में विभाजित किया गया है
1. सिद्ध क्षेत्र
2. कल्याणकक्षेत्र
3. अतिशय क्षेत्र
4. कलाक्षेत्र
सिद्ध क्षेत्र :-
जिस क्षेत्र (स्थान) से तीर्थंकर और सामान्य केवली को मोक्ष की प्राप्ति हुई है, ऐसे परम पावन क्षेत्र को सिद्धक्षेत्र कहते हैं। जैसे - अष्टापदजी (कैलास पर्वत), ऊर्जयन्त पर्वत (गिरनारजी), श्रीसम्मेदशिखरजी, चम्पापुरजी, पावापुरजी, नैनागिरजी, बावनगजाजी, सिद्धवरकूटजी, मुक्तागिरि , सिद्धोदयजी (नेमावर), कुंथलगिरिजी, मथुरा चौरासीजी, तारंगाजी, शकुंजयजी, गुणावाजी, कुण्डलपुरजी आदि।
कल्याणक क्षेत्र :-
जिस परमपावन क्षेत्र में तीर्थंकर के गर्भ, जन्म, दीक्षा (तप) और ज्ञानकल्याणक हुए हों, उन्हें कल्याणक क्षेत्र कहते हैं - जैसे- अयोध्याजी, श्रावस्तीजी, कौशाम्बीजी, काशीजी, मिथिलापुरजी, कुशाग्रपुरजी, शौरीपुरजी, कुण्डलपुरजी आदि।
अतिशय क्षेत्र :-
श्रावकों के विशेष पुण्य से देवों द्वारा (देवगति के जीव) विशेष चमत्कार आदि किए जाते हैं, ऐसे क्षेत्रों को अतिशय क्षेत्र कहते हैं। जैसे- गोमटेश्वरजी, महावीरजी, तिजाराजी, नवागढ़जी, नेमगिरिजी (जिन्तूर), कचनेरजी, भातकुली, जटवाडा, चन्द्रगिरि जी डोंगरगढ़ (छ.ग.) अादि ।
कला क्षेत्र :-
जिन अतिशय क्षेत्रों में कलाकारों ने अपनी कला विशेष प्रदर्शित की है। ऐसे क्षेत्रों को कलाक्षेत्र कहते हैं। जैसे-धर्मस्थलजी, शंखबसदीजी (कर्नाटक), मूढबिद्री, खजुराहोजी, नौगामाजी (राजस्थान), एलोराजी आदि।