तीसी बीज के बारेमे लिखिए|
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तीसी भारतवर्ष में भी पैदा होती है। लाल, श्वेत तथा धूसर रंग के भेद से इसकी तीन उपजातियाँ हैं इसके पौधे दो या ढाई फुट ऊँचे, डालियां बंधती हैं, जिनमें बीज रहता है। इन बीजों से तेल निकलता है, जिसमें यह गुण होता है कि वायु के संपर्क में रहने के कुछ समय में यह ठोस अवस्था में परिवर्तित हो जाता है। विशेषकर जब इसे विशेष रासायनिक पदार्थो के साथ उबला दिया जाता है। तब यह क्रिया बहुत शीघ्र पूरी होती है। इसी कारण अलसी का तेल रंग, वारनिश और छापने की स्याही बनाने के काम आता है। इस पौधे के एँठलों से एक प्रकार का रेशा प्राप्त होता है जिसको निरंगकर लिनेन (एक प्रकार का कपड़ा) बनाया जाता है। तेल निकालने के बाद बची हुई सीठी को खली कहते हैं जो गाय तथा भैंस को बड़ी प्रिय होती है। इससे बहुधा पुल्टिस बनाई जाती है।
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तीसी को अलसी भी कहते है | ये भारत वर्ष में भी पैदा होती है | ये अत्यंत रेशेदार फसल के रूप में पायी जाती है। इसके रेशे से डोरी तथा रस्सी आदि बनाते हैं। रंग के आधार पर इसकी तीन उपजातियाँ हैं -सफेद, लाल,तथा मटमैली | इसके पौधे लगभगदो या ढाई फुट ऊँचे होते हैं, जिनमें बीज निहित रहता है | इन बीजों से तेल निकाला जा सकता है | इसका तेल हवा के साथ मिलते ही कुछ ही समय में ठोस अवस्था में बदल जाता है। वस्तुतःजब इसे विशेष रासायनिक उत्प्रेरक पदार्थो के साथ मिलाकर उबाला जाता है तब यह प्रक्रिया शीघ्र सम्पूर्ण हो जाती है। यह एक औषधी भी है तथा कई गुणों की खान है |
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