तात्विक अवस्था से आप क्या समझते हैं? समझाइए।
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प्रत्यक्षवाद (positivism) वह सिद्धान्त है जो केवल वैज्ञानिक पद्धति से प्राप्त ज्ञान को ही अपर्युक्त, विश्वसनीय व प्रामाणिक मानता है। प्रत्यक्षवादियों का मानना है कि प्रत्यक्षवाद विज्ञान की मदद से उद्योग, उत्पादन एवं आर्थिक प्रगति के लिए आशा की किरण है। इस दृष्टि से मार्क्स का वैज्ञानिक भौतिकवाद भी प्रत्यक्षवाद के ही निकट है, क्योंकि मार्क्स ने उसे तर्क की कसौटी पर कसा है। कॉम्टे का कहना है कि ‘‘कोई भी वस्तु सकारात्मक तभी हो सकती है जब उसे इन्द्रिय ज्ञान के द्वारा सिद्ध किया जा सके, अर्थात् देखा, सुना, चखा या अनुभव किया जा सके।’’
व्यवहारवाद के आगमन से राजनीति विज्ञान में परम्परागत राजनीतिक सिद्धान्त का स्थान आधुनिक राजनीतिक सिद्धान्त ने ले लिया। आधुनिक राजनीतिक सिद्धान्त अपने जीवन के प्रारम्भिक बिन्दु पर राजनीति-विज्ञान को मूल्य-निरपेक्ष बनाने पर जोर दिया। इसलिए यह स्वाभाविक है कि ऐसा विज्ञान के अन्तर्गत ही संभव है। व्यवहारवादियों ने राजनीति-विज्ञान को प्राकृतिक विज्ञान की तरह बनाने के लिए वैज्ञानिक पद्धति को अध्ययन व विश्लेषण का आधार बनाया। इसी वैज्ञानिक पद्धति के कारण राजनीति-विज्ञान में प्रत्यक्षवाद की अवधारणा का आगमन हुआ।
यद्यपि प्रत्यक्षवाद का प्रयोग यूनानी दर्शन में भी मिलता है। अरस्तु ने वैज्ञानिक पद्धति के आधार के रूप में प्रत्यक्षवाद या सकारात्मकवाद के विचार का ही पोषण किया था। अरस्तु से लेकर ऑस्ट कॉम्टे तक मानव प्रकृति को वैज्ञानिक उपायों द्वारा पूर्णता एवं वैज्ञानिकता को मानव जीवन और व्यवहार का मार्गदर्शक बनाना, यह दोनों ही बातें बहुत से लोगों व विचारकों की मांग रही है। विज्ञान के विकास के साथ-साथ समाज के व्यवहार का हर पहलू भी प्रभावित होने से सामाजिक विज्ञान में वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग होना आम बात है।
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