तितली तितली ! कहाँ चली हो नंदन वन की रानी-सी ।
वन-उपवन में, गिरि कानन में फिरती हो दीवानी-सी।
फूल-फूल कर अटक-अटक कर करती कुछ मनमानी-सी
पत्ती-पत्ती से कहती कुछ,,अपनी प्रणय कहानी-सी
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इस कविता में कवि कहता है कि हे तितली, हे जंगल की रानी। तुम कहाँ जा रही हो? तुम हमेशा इधर-उधर उड़ती रहती हो आप हमेशा अपने खुशहाल जीवन में खोई हुई लगती हो।कभी-कभी आप एक फूल से रुक जाते हैं और मीठी खुशबू का आनंद लेते हैं और फिर से दूसरे फूल पर उड़ जाते हैं. आप भी पत्तियों से बात करती रिहती हो और हमेशा उन्हें कहानियां सुनाती हो। आप हमेशा अपने जीवन का आनंद लेती है और खुश रिहती है।
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