टूटते हुए एकांकी के प्रमुख पात्रों का वर्णन कीजिए
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'टूटते हुए' डॉ. चन्द्र का तीसरा एकांकी संग्रह है। यह साहित्य संस्थान, गाँधीनगर, कानपुर से 1977 ई. में प्रकाशित हुआ था। इसमें दस एकांकी संगृहीत हैं। इस संग्रह के एकांकी वस्तु और शिल्प की दृष्टि से विविधतापूर्ण हैं। 'टूटते हुए' प्रयोगशील स्वगत नाट्य है। इसमें महानगर के टूटते हुए मध्यवर्गीय परिवार का चित्रण है। 'मुखौटै' और 'सही प्रतिनिधि का चुनाव' 'स्ट्रीट प्ले' के रूप में हैं। 'भावना के पीछे' और 'शादी का चक्कर' रेडियो नाटक हैं। 'नींद का चक्कर' और 'नयी पौद' बाल.एकांकी हैं। बाकी ऐतिहासिक और पौराणिक हैं।
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