तोड़ता है मोह का बंधन, क्षमा दो,
गाँव मेरे, द्वार-घर, आँगन, क्षमा दो,
आज सीधे हाथ में तलवार दे दो,
और बाएँ हाथ में ध्वज को थमा दो।
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wow nice poem but where is your question.......??
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very nice poem. But where is your questions
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