तोड़ती पत्थर कविता में निराला की स्त्री दृष्टि पर प्रकाश डालिए
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तोड़ती पत्थर कविता में निराला की स्त्री दृष्टि पर प्रकाश डालिए
तोड़ती पत्थर कविता सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला द्वारा लिखी गई है |कविता में कवि कहना चाहते है , वह तोड़ती पत्थर कविता में निराला ने प्रतिकूल परिस्थितियों में श्रम करती महिला का चित्रण किया है |
व्याख्या :
इलाहाबाद की किसी सड़क के किनारे पत्थर तोड़कर मिट्टी बनाती मज़दूर औरत मेहनत करती है | एक महिला है जो पत्थर तोड़ने जैसा श्रम साध्य कर रही है | नायिका स्वयं एक जड़ पत्थर की भाँति है जिसे नियति लगातार तोड़ रही है I श्रमिका पत्थर तोड़ने जैसे कठोर कर्म में प्रवृत्त है I वह एक वृक्ष के नीचे बैठी है पर वह पेड़ तनिक भी छायादार नहीं है I गर्मी होने के कारण भी वह पत्थर तोड़ रही है | उसका शरीर जल रहा है , फिर भी वह लगी हुई है | उसका शरीर काँपता है और माथे से पसीने की बूंदे टपकती है I कोई उसे आराम करने के लिए नहीं बोल रहा है | कोई उसे खाने के लिए नहीं पूछा रहा है |और कहती है , मैं तोड़ती पत्थर’ I
Explanation:
तोड़ती पत्थर कविता भी इसी तरह की कविता है। इसमेें निराला जी ने इलाहाबाद के पथ पर भरी दोपहरी में पत्थर तोड़ने वाली मजदूरनी का यथार्थ चित्रण किया है। यह चित्रण अत्यंत मर्मस्पर्शी है। मजदूरनी चिलचिलाती धूप में बैठी अपने हथौड़े से पत्थर पर प्रहार कर रही है।