टीवी पर दिखाए जाने वाले विज्ञापनी का बच्चों पर बढ़ता प्रश्नावर विषय पर शिक्षक और विद्यार्थी के बीच हर वार्तालाप को संवाद शैली में लिसिस
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टेलीविजन बच्चों को चुप करवाने का नया तरीका बन गया है। बच्चा रो रहा हो या जिद कर रहा हो, बस उसके हाथ में टीवी का रिमोट पकड़ा दो, वह तुरंत शांत हो जाता है (1)। इस प्रकार किशोरावस्था तक पहुंचते-पहुंचते कई बच्चों के लिए सभी समस्याओं का समाधान टेलीविजन, मोबाइल या फिर कंप्यूटर बन जाता है। फिर चाहे वो कार्टून देखें या कोई और कार्यक्रम, सभी में उन्हें विज्ञापन मिलते हैं, जो खासकर उन्हीं को फोकस करते हुए बनाए जाते हैं। एक रिसर्च के अनुसार, एक साल में बच्चा लगभग 40 हजार या उससे अधिक विज्ञापन देखता हैशोध से पता चला है कि कार्टून और चलचित्र पात्र, दोनों ही बच्चों का आकर्षण केंद्रित करने में प्रभावी साबित हुए हैं। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं, वो इन पात्रों से भावनात्मक रूप से जुड़ने लगते हैं और उनके द्वारा विज्ञापित
उत्पादों की तरफ आकर्षित होने लगते हैं। इसके अलावा, कंपनियां अपने उत्पादों के साथ कई ऑफर्स देती हैं, जो बच्चों को आकर्षित करते हैं, उदाहरण के लिए कैंडी, चॉकलेट्स और चिप्स के साथ मिलने वाले खिलौने। इन ऑफर्स के चलते भी बच्चे उन उत्पादों को खरीदने की जिद करने लगते हैं (3)। आप जानकर हैरान होंगे कि खाद्य और पेय कंपनियां बच्चों के लिए बनाए उत्पादों के विज्ञापन पर हर साल लगभग 1200 करोड़ रुपये खर्च करती हैं (2)। आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि विज्ञापन का बाजार कितना बड़ा है।
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