त्याग तो ऐसा कीजिए, सब कुछ एकहि बार ।
सब प्रभु का मेरा नहीं, निहचे किया विचार ।।
महतको निश्चय करना
भासस
सुनिये गुण की बारता, औगुन लीजै नाहिं। अब
हंस छीर को गहत है, नीर सो त्यागे जाहिं।।
शी-पानी हा
अब
bi
छोड़े जब अभिमान को, सुखी भया सब जीव ।
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wow good.........
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