Hindi, asked by santhusubbu2006, 6 months ago

त्योहार सबको प्रिया लगता है क्यों​

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Answered by Deepti42
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त्योहार:राखी का बंधन ऐसा है, जो सबको प्रिय लगता है: नीलम

राहतगढ़2 महीने पहले

राखी का बंधन ऐसा है, जो सबको प्रिय लगता है: नीलम|राहतगढ़,RAHATGARH - Dainik Bhaskar

रक्षाबंधन के त्यौहार पर जो सबसे अच्छा उपहार हम एक-दूसरे को देंगे, वह है शुभ भावनाओं का आशीर्वाद

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रक्षाबंधन पर्व पर अपने मन की नकारात्मकता से खुद को बचाने की प्रतिज्ञा लेनी चाहिए। ये रक्षा है, हमारी अपनी, अपने आपसे। भाई-बहन का पवित्र संबंध है। यानी एक-दूसरे के लिए कोई गलत सोच नहीं होती। मेरी आत्मा, दूसरी आत्मा के लिए गलत नहीं सोचे। यह बात प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय शाखा राहतगढ़ की बीके नीलम बहन ने संकल्प राखी बांधने के दौरान कही। उन्होंने कहा कि रक्षाबंधन के त्यौहार पर जो सबसे अच्छा उपहार हम एक-दूसरे को देंगे, वह है शुभ भावनाओं का आशीर्वाद। यह उस धागे की बात ही नहीं है। यह तो उस धागे के प्यार, पवित्रता और रक्षा की बात है। जो जहाँ है, वही सुरक्षित और स्वस्थ रहे ,क्योंकि यह कोई दैहिक त्यौहार नही है यह तो पवित्रता का त्यौहार है , संसार मे कोई किसी के बंधन में नही बंधना चाहता पर , पर राखी का बंधन ऐसा है जो सबको प्रिय लगता , पर इसमे रक्षा शब्द क्यो जुड़ा है हमे किससे डर है जो रक्षा की जरूरत है , वास्तव में रक्षा का बंधन भगवान से है ,पर उसके साथ बंधन हो तब रक्षा होगी । जब हम अपने आत्मिक स्वरूप में टिके रहे जब माथे पर टीका लगता मतलब है हम अपने स्वमान में टिके रहे , स्वधर्म में टिके रहे , ओर वो स्वमान है में आत्मा हु आत्मा स्त्री या पुरुष नही होती ,इस नाते हम सब परमात्मा की संतान है भाई भाई है । कहते हैं ना मन ही हमारा मित्र और मन ही हमारा दुश्मन है। मन हमारा दुश्मन है, मतलब हमारे नकारात्मक विचार। जैसे बुरा लगने की आदत। थोड़ा-सा किसी ने कुछ कहा नहीं कि मेरे आंसू आने लगे। तो दुश्मन कौन है? जब परमात्मा इस सृष्टि पर अवतरित होते हैं। वे हमें ज्ञान देते हैं, प्यार देते हैं, शक्ति देते हैं, लेकिन सिर्फ देने से वो हमारे अंदर आ नहीं जाता है। उसके बाद मुझ आत्मा को प्रतिज्ञा करनी होती है। तब हम अपनी रक्षा होते हुए देखते हैं। परमात्मा की भूमिका है, हमें वो धागा बांधना। फिर उसकी प्रतिज्ञा में बंधना, ये हमारी भूमिका है। हम अपनी रक्षा खुद करेंगे। अपने ज्ञान को इस्तेमाल करने से मेरी रक्षा हुई। लेकिन जब तक मैं उसको इस्तेमाल नहीं करूंगी, तब तक मेरी रक्षा नहीं होगी। जितना हम मर्यादाओं में चलेंगे उतनी आत्मा की शक्ति बढ़ती जाएगी। कई लोग मिलते हैं जो कहते हैं आज हमारा रिश्ता पहले से अच्छा हो गया। कुछ तो ऐसे भी भाई-बहन मिलते हैं, जो कहते हैं कि हम तो सुसाइड करने तक पहुंच गए थे लेकिन हम बच गए। आखिर किससे बच गए? हम अपनी ही नकारात्मक सोच से बच गए ना। मतलब हर आत्मा की रक्षा उस आत्मा की मर्यादाओं में है। आज सच में फिर से वो पवित्रता का धागा बांधने की जरूरत है।

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