"Tabhi samarth bhav hai ki taarta hua tare" iska matlab kya hai? (Manushyata , class 10)
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इन पंक्तियों में मैथिलिशरण गुप्त कहते है कि मनुष्य जीवन को सार्थक और सामर्थ्यवान तभी माना जा सकता है जब वह अपनी उन्नति के साथ-साथ दूसरों के हितार्थ व उत्थान के लिए प्रयत्नशील हों। मनुष्य कहलाने का अधिकारी वही है जो मनुष्य जो लोगों की सेवा, सहायता और हितार्थ कार्य करता हो।
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मनुष्य जीवन को सार्थक और सामर्थ्यवान तभी माना जा सकता है जब वह अपनी उन्नति के साथ-साथ दूसरों के हितार्थ व उत्थान के लिए प्रयत्नशील हों।
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